शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

वह कौन है जो पास भी और दूर भी 
श्रृष्टि जिससे है घटित पर सृष्टि से जो दूर भी

जड़, गतिशील, तरल से है जगत
तत्व सारे है ये किससे

हर प्रज्ञावान अब तक , आदि से ही है खोजता
वह कौन है वह कौन है

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

हे आदि देव हे महादेव
हर- हर, हर -हर, हे शिव शम्भो
हे काल चाल, हे चन्द्र भाल
हर ताप हरो हे शिव शम्भो

है नीलकंठ में मुंड माल
है जटाजूट में गंग जाल
दिगम्बरी गेह पर भस्म

मंगलवार, 30 जनवरी 2024

तू उदास क्यूं है कचनार
खड़ा अकेला रीता - रीता
अधर हैं प्यासे प्यासी आंखे
हिय व्याकुलता का ज्यूं आगार
तू उदास क्यूं है कचनार । .

गुरुवार, 25 जनवरी 2024

कर्तव्य बोध हो प्रथम चरण 
अधिकार बोध अगले पग पर
राष्ट्र समर्पित जब हर गण हो
गणतन्त्र तभी प्रगति पथ पर ।

उल्लास उमंग क्षणिक जब हो
उत्प्रेरक जीवन कर न सके
नाभि जगे स्वस्फूर्ति मथे


सोमवार, 1 जनवरी 2024

आ रहे राम

आ रहे
हैं राम
संवर जा रे मानव
हुआ नया भिंसार
सम्हल जा हे मानव । 

रामराज्य को ना देखा पर
रामराज्य पर आस टिकी
ठुमक ठुमक कर आते राम
अधरों पर मुस्कान टिकी ।

आओ सब मिल स्वागत कर लें
नव प्रभात की बेला में
रामराज्य है मधुरिम आभा
हर सपनों के रेला मे ।

मांज मांज कर हर मन तन को
पशु से मानव कर ले तू
नव युग के इस सन्धिकाल में
संग राम के हो ले तू ।

नव वर्ष नहि नव विहान है
चेतनता का आलिंगन कर
अगवानी कर रामराज्य की
मुस्कानों से जीवन भर ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन भोपाल
दिनांक ०१ . ०१ . २०२४









गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

रसिक मन

 

दिगम्बरी गेह ले मुझ पर पसर जाओ तनिक
ये उघाड़ी गेह आतुर, तुझको पुकारे ऐ  सखी ।

नासिका मिल नासिका से, सुरभित करे जिस घड़ी
दृग सरोवर में तनिक, मुझको उतरने दो सखी ।

घिर कुन्तलों के मेघ, विधु, जो तनिक सकुचाये तो
अधरों पे धर अधर , चूषण सुधा करने दो सखी ।

कर मध्य आनन जब भरूं मैं, रुचिकर तेरा 
रक्तिम अपने गंड , अधरों पे आने दो सखी । 

सिहरता सा धौंकता सा वक्ष मेरा जो चाहता
 उरोजद्वय को तनिक उन पर बहक जाने दो सखी ।

कटिबन्ध जब कटिबन्ध से लाड़ करने लगें
हस्तद्धय स्कन्ध पर स्निग्ध आने दो सखी । 

जब तुम्हे अहसास दे प्रवेश तुझमें मैं करूं
अस्तित्व मेरा, भर अंक में, लुप्त होने दो सखी ।

सघनता की उत्तेजना, अवलेह बन ये श्वेद आये
चरण दोनों खोल अब, गेह भर कस लो सखी ।

चरम पर आ स्खलित जब अस्तित्व मैं तुझमें करूं
नव चेतना स्फूर्ति अर्पण,कस बन्ध कर दो ऐ सखी ।

कल्पनाओं में छंद रच रच स्पर्श तेरा कर रहा
यथार्थ में झकझोरने को अब तो आ जाओ सखी ।



उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन भोपाल
दिनांक २९ . १२ . २०२३

मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

मैं वापस आ रहा हूं तुझसे मिलने को
बिछुड़े तंतु तरंगो से फिर जुड़ने को । 
श्वांस श्वांस परिहार लगा जग
किलकारी थी व्यथा जनित
प्राणवायु से रिक्त शिखर सब