शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

अंतस नाद

अंतस नाद


अहं ब्रम्हास्मि का नाद
अक्सर गुंजायमान हो जाता है
कर्ण-पेटिका के अंतिम सिरे पर
मन मस्तिष्क के साथ साथ
धमनियाँ शिराएँ भीकंपित हो,
अस्थि माँस पेसियोंसे
विलगाव करने लगती हैं
यूँ लगता है , खोने लगा है
अस्तित्व मेरा
घुलने लगा हूँ वातावरण में
कपूर बन कर.

स्वयं को खोजता हुआ मैं
स्तब्द्ध सा हो जाता हूँ
थोड़ा विचलित भी
पाता हूँ जब परम-पिता के
उपनिषद् स्वयं को

क्षिति,जल,पावक,गगन समीर
का विलगाव
उनकाव्योम विवर में
तिरोहित होना
अखंड नाद ध्वनि संग
एकाकार हो जाना
रथी में स्फूर्ति उर्जा का
संचार कर प्रदीप्त कर जाता है
जैसे पुत्र बेताब हो
माँ से बिछड़
मिलन को
यूँ बेकली का अहसास करा जाता है

अस्थि-पंजर में अवरूद्ध गति को
वेध कर
ब्रम्हांड के लय से जोड़ कर
स्वयं समय का अंश बन
बहना , उसकी धार में
सब में स्वयं को, सब को स्वयं में
महसूस करना
मानव की अकिंचनता से
प्रत्यक्षीकरण कराता है
सत्य का असत्य में विलय
असत्य का सत्य से मधुर मिलन
दिवा रात्रि के संबंधो को
परिभाषित कर जाता है


अहं ब्रम्हास्मि का नाद
अक्सर गुंजायमान हो जाता है
मेरे अंतस को भिगो कर
अपने मधुर स्वरों की सरगमी
अनादि ध्वनि से
मुझे इस संसार की निःसारिता
से अवगत कराता है
उमेश कुमार श्रीवास्तव (२९.०४.२०१६)


जीवन की राह

जीवन की राह


मैं जीता हूँ टुकड़ो में, हर पल को इक जीवन मान
जीवन है इक अबूझ पहेली,क्यूँ, कैसी,हो झूठी शान

अगले पल की खबर नहीं जब, क्यूँ जीऊं हर पल को
रेवा तट बालू पर बैठूं या तका करूँ मैं मलमल को

तेरे सुख से ना खुश होंगे सब, ना दुःख तेरा तडपाएगा
ना जी जीवन किसी और का, अपना भी खोता जाएगा

सब के अपने दुःख सुख हैं काल चक्र का खेल है ये
पल पल जी ले अपना जीवन आदि शक्ति का मेल है ये

पर जान ले जीवन क्या है, जिसे मैं जीना कहता हूँ
जो मैं जीता हूँ हर पल,परे मौत जो कहता हूँ

आन रखो पर शान नहीं, मान रहे अभिमान नहीं
प्रज्ञा संग ज्ञान रहे पर,अहंकार कृति गान नही

धन दौलत ,पद, बल से, क्या आनंद खरीदा जा है सका
मृगमारीचिका ने अब तक क्या प्यास किसी की बुझा है सका

अंतस शुद्ध रखो जो सदा, सब में प्रतिबिंबित होगे तुम
दे सकोगे दुःख उन्हे बस सुख उन्हे बाँटोगे तुम

कर्म राह को सीधी रखना सुख श्रोत यही है जीवन का
दुःख मिले राह में तो जानो कर्म फलों का ये है लेखा

सुख कपोत को खुला गगन दो लौट लौट वो आएगा
दुःख बस है इक आगंतुक कहाँ ठहर वो पाएगा

सानिध्य मिले जिसे तुम्हारा चाहे वह हो क्षण भर का
दुःख का कण हर, हर लो उसका दे दो सुख घट भर का

हर क्षण जी लो ऐसा जीवन भूल रहो कल क्या होगा
सुख शान्ति नहीं जब जीवन में, तो जीवन का ही क्या होगा

मौत रही हो अगले पल, भय, चिंतन क्या करना
जब जीवन ही है इक क्षण का युगों युगों का क्या करना


उमेश कुमार श्रीवास्तव (२९.०४.२०१६)

रविवार, 24 अप्रैल 2016

सुजाता बिटिया के परिणय दिवस २०.०४.२०१६ पर सप्रेम भेंट

सुजाता बिटिया के परिणय दिवस २०.०४.२०१६ पर सप्रेम भेंट
( पिता चंद्र देव शर्मा के उद्गार )
1
वो प्यारी बिटिया रानी
ना भर यूं आखों में पानी
वो प्यारी बिटिया रानी
ये दिन खुशियाँ ले कर आया , प्रमुदित मन है प्रमुदित काया
हर दिशा अरुणमयी जब है,फिर आँखो में अश्रु ,है क्यूँ आया ?

मां की ममता का ओर आज,मेरे दुलार का छोर आज
ऐसे में ना छेड़ गमगीन राग,बजनें दे खुशियों के सभी साजl

भाई के चेहरे का देख तेज,उसकी चालों का मधुर वेग
मतवाला कैसे झूम रहा,बहना का माथा चूम रहा
ज्यूं कहना वह यह चाह रहा,हो खुशियों भरा संसार तेरा l

वर रूप धरे हैं अरूण खड़े ,तू आज बन रही वामा उनकी
है पथिक जोहता बाट तेरी,संग कदम बढ़ाना है जिनकी l

पर संम्बन्ध नहीं बस तेरा उनका,दो वंशों को तू है जोड़ रही 
हर दिल में खुशियां पहुंचे तुझसे,ममता मां की है बोल रही l

जितना हम तुझको दे हैं सके,उससे भी ज़्यादा प्यार मिले
पर मिले बड़ों को सम्मान तुझसे,छोटो को स्नेह दुलार मिले l

संस्कार तुझे जो मिले यहाँ,उनको अब दुगनित तुम कर लो
सुरभित उनकी मकरन्दो से,अपना घर आँगन महका तुम दो l

हमसे ही मातु पिता हैं वहाँ,संग भाई बहन की जोड़ी भी
सब को सम्मान मिले तुमसे,रह जाए कमी ना थोड़ी भी l

संसार सगर में उतर रहे,तुम युगल हंस को आशीष मेरा
ऐसे बनो वर-वामा तुम,साकार बने हर स्वप्न मेरा l


उमेश कुमार श्रीवास्तव (०७.०४.२०१६)