बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

मेरे विचार २८.१०.२०

मेरे विचार

प्रश्न : भावना शून्य की स्थिति क्यों और कब होती है? इस स्थिति का मतलब क्या होता है सर?

उत्तर : भावना क्या है पहले यह जाने
जब किसी व्यक्ति वस्तु या स्थान से लगाव उत्पन्न हो तो मन चिन्तन उससे जुड़ जाता है तो भाव उसके प्रति जगता है उसके हर अच्छे बुरे पहलू को हम चेतना से जुड़ अपना मानने लगते हैं उसका हर सुख दुःख हमे खुशी या दुःख देता है मन की यह दशा ही भावना है ၊
भावना शून्य हुआ ही नही जा सकता,
भाव न जगना पाषणता की निशानी है जहां प्राण है वहां पाषाण नही हो सकता और प्राणवान भावना शून्य नही हो सकता हर प्राण के स्पन्दन में भाव है ၊

प्रश्न : तो मनुष्य पाषाण कब हो जाता है ?

जब मानव के अन्दर का सब सरस भाव सूख जाये
रस का अभाव पाषाण बनाता है ၊
सरसता जीवन है, शरीर के हर अंग से रस बहाना जिससे जग कण कण सरस होता रहे ,जीवन का मूल है ၊

प्रश्न :  हूं, और रस का अभाव  कब और क्यों होता है ?

जब हम जान बूझ कर रेगिस्तान में अपने जीवन रस को बहा दें जहां रस का अजश्र श्रोत है उसको अनदेखा कर ၊
प्रश्न : तो क्या हमारा स्वयं का भावना शून्य होते जाना यह दर्शाता है कि हमारा प्रेय रेगिस्तान है ?
उत्तर : जीवन रस भाव है जिससे भावना बनती है यदि भाव किसी के प्रति जगे रस प्रवाहित हो उस दिशा में भावना की लहरें उठें ,वे लहरें नौ में से किसी भी रस तरल की हो ,उसके तक पहुंचे और फिर लुप्त हो जायें बिना किसी परिणाम तो हां वह रेगिस्तान है , पर उस तक भावना की लहरों का पहुंचना आवश्यक है , अन्यथा वह रेगिस्तान नहीं है वरन स्वयं में ही कहीं रेगिस्तान बना है जो स्वयं की भावना का शोषण कर रहा है ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव
शिवपुरी , २८.१०.२०


जीवन तृषा की तृप्ति

जीवन तृषा की तृप्ति

स्वाती बून्द मिली कब किसको ?
पपिहा सम, तड़प, जगे तन जिसको
तन मन जरे , हिय अगन तपन से
तृप्त करे , तब , जलधर आ उसको ၊

है बून्द वह रसराज की ,
पर खोजती तपता बदन ,
तृप्त करती बस उसे ,
करता उसे जो, सब समर्पण ၊

प्यास बुझती ही रही
जग प्यास में चलता रहा
है मलंग जो, नेह में
बस तृप्त वह होता रहा ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव
शिवपुरी , २८.१०.२०

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

मेरे विचार

मेरे विचार

*भावना शून्य की स्थिति क्यों और कब होती है? इस स्थिति का मतलब क्या होता है सर?*

भावना क्या है पहले यह जाने
जब किसी व्यक्ति वस्तु या स्थान से लगाव उत्पन्न हो तो मन चिन्तन उससे जुड़ जाता है तो भाव उसके प्रति जगता है उसके हर अच्छे बुरे पहलू को हम भावना से जुड़ अपना मानने लगते हैं उसका हर सुख दुःख हमे खुशी या दुःख देता है मन की यह दशा ही भावना है

भावना शून्य हुआ ही नही जा सकता


नहीं सर मेरे साथ बहुत होता है जब मैं भावना शून्य हो जाती हूं

भाव न जगना पाषणता की निशानी है जहां प्राण है वहां पाषाण नही हो सकता और प्राणवान भावना शून्य नही हो सकता हर प्राण के स्पन्दन में भाव है

To मनुष्य पाषाण कब हो जाता है

जब उसके अन्दर का सब सरस भाव सूख जाये

रस का अभाव पाषाण बनाता है

सरसता जीवन है शरीर के हर अंग से रस बहाना जीवन का मूल है

हूं ,और रस का अभाव  कब और क्यों होता है ?

जब हम जान बूझ कर रेगिस्तान में अपने जीवन रस को बहा दें जहां रस का अजश्र श्रोत है उसको अनदेखा कर ၊

जीवन रस भाव है जिससे भावना बनती है यदि भाव किसी के प्रति जगे रस प्रवाहित हो उस दिशा में भावना की लहरें उठें ,वे लहरें नौ में से किसी भी रस तरल की हो ,उसके तक पहुंचे और फिर लुप्त हो जायें बिना किसी परिणाम तो हां वह रेगिस्तान है , पर उस तक भावना की लहरों का पहुंचना आवश्यक है , अन्यथा वह रेगिस्तान नहीं है वरन स्वयं में ही कहीं रेगिस्तान बना है जो स्वयं की भावना का शोषण कर रहा है ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव



शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

विजयादशमी

विजयादशमी

विजयी हुए थे राम मगर,
वह युग त्रेता बीत गया ၊
दुर्गुण पर्यायी रावण तो
इस युग में आकर जीत गया ၊

हर प्राण हुआ है रावण अब
जो बचे रहे वे रीते हैं ,
सुख बांट रहे हैं रावण अब 
राम तो रीते रीते हैं ၊

खलनायक नाहक रावण  है
हर नायक आज दुर्दान्त यहां ,
था चरित्रत्रयी का, वह अधिनायक
हैं दुष्चरित्रता से ये निष्णान्त यहां ၊

पुतलों पर भले ही चेहरे हम
रावण के आज सजाते हैं ,
राम मुखौटे पहन पहन
रावण का दहन कराते हैं ၊

गौर से जो देखें हम अन्तस
तो रावण को वहां सजाये हैं,
पुतलों में रावण के भीतर
हम ,राम को आज बिठाये हैं ၊

हम विजय कर रहे सुर जन पर,
दुर्जन की जयकार लगाते हैं ၊
विजयादशमी को हम सब मिल,
यूं राम दहन कर आते हैं ၊

यदि यूं ही हम विजयी होते
हर सुर का हनन करायेंगे ၊
फिर ,वह दिन दूर नही साथी ,
हम रावण दिवस मनायेंगे ၊

अब तो जागो हे भारत,
स्वचरित्र सन्धानों तुम  ၊
रावण के अच्छे गुण अपना,
अपने रावण को संहारो तुम ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव ,दिनांक ०८.१०.१९ विजयादशमी , पुरी , उड़ीसा