गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

जड़ से जो उखड़े

जड़ से जो उखड़े

 जड़ से जो उखड़े,तो जाओगे कहां 

पत्तों के सहारे, ना बसेगाआसियां ၊


तनोगे कैसे ,तने के बिना
बिन शाख कैसे होगी जीविका
अभी जो हरे हैं कल पीत होंगे
ले जायेगा पतझड़ हर इनके निसां ၊

जड़े सींचती है पोषक रसों को
पोषित सदा, फूलता औ फला है,
जड़ों के बिना, त्रिशंकू बनोगे
न दे सकोगे कोई, पग के निसां ၊

जड़ों से जुड़े जो पाओगे पोषण
हरितिमा लिये लहराओगे सदा
प्राणसंचरण ले ,छांव पा जायेंगे
सहेजेगी धरा भी तेरा आसियां ၊

जड़ से जो उखड़े,तो जाओगे कहां
पत्तों के सहारे, ना बसेगाआसियां ၊


उमेश श्रीवास्तव
नव जीवन विहार कालोनी
विन्ध्य नगर
दिनांक : ०९ . ०३ . २०२१

मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

चन्द शेर

चन्द श़ेर

१. है मोहब्बत जो फिक्र करते तुम्हारी
नही तो हमें फिक्र खुद की भी नहीं है
२. ना समझी हमें तू, न बातें हमारी
खता कर रही ये अदू  अब तुम्हारी । ( अदू /अदा)
३. उन्हे तो मजा आ रहा जिन्दगी का
उन्हे क्या फरक कोई गुमसुम है कहीं पर
४. सर्दियों की गर्मियां जिस्म घायल करें है
लाख कोशिश करो खूं जमता नहीं है ।
५. शोखियां जो हैं उनकी खंजर सरीखी
काट देती जिगर पर, न लहू वो निकालें
६. हुश्न पर चढी गर, इश्क की चासनी तो
जमाने सम्हलना , आग लग जायेगी
७. इश्क तो जला है बन पतंगा सदा
 न फुरसत समा को , रौशनी बाटने से

उमेश श्रीवास्तव

सोमवार, 28 दिसंबर 2020

जीवन ,सच क्या ?

कितना मुश्किल होता है
सच को 
सच साबित करना

अभी
सुबह जग कर
परदे सरकाये
सुनहली धूप 
बिखरी दिखी चहुं दिश
किरणों संग 
गरमाहट का बाग
फुटहरी कलियां ले
गलीचे का रूप धरे
कदम तले
नरम हथेली से 
सहलाती सी
उन्माद जगाये
आंगन में फुदकती 
चिड़ियो की चुक चुक
मीठी मीठी स्वर लहरी
शीतलता का 
अहसास जगाती
मधुर बयार संग
अन्तर मन को भी
उष्मता बांट रही थी ၊
मन सधता सा
अध्यात्म जगत की ओर
साधना पथ पर
बस बढ़ने को था ၊

पर शायद
यह मेरा भ्रम था
यथार्थ नही
क्यों कि 

उसने आ कर
उन्मादित स्वर में कहा
क्या मौसम है !
रिमझिम रिमझिम
गिरता पानी
बादल का संग छोड़
हम से संगत जोड़ रहा है 
देखो चहुं दिश
धुआंधार सा पसरा
जलकण
शीतलता का अहसास कराता
तन मन दोनो
भिगो रहा है
चिन्तन में भी
अपनी स्मृतियां
गोभ रहा है  ၊
पग तल में
छप छप राग
अन्तस तक झंकारित
लिपट नाचने को
अंग अंग
फड़के 
उष्म हो चुकी 
रक्त वाहिनियां
उन्मादित
तन मचले आलिंगन को
तड़ित कौंधती
हर विचार में
ज्यूं रवि रश्मियां
अपनी कमशिन काया के
अंकों में भर
उष्मा से भर रही 
चहकते नभचर
संगीत मिलन का
छेड़े देखो
कहां तुम खोये
यह मिलन बिन्दु
आत्म प्रकृति का
आओ कुछ आज यहां हम बोयें ၊

क्या सच है ?
बिचर रहा इस माया वन में
बिचार रथी बन
अपने रथ पर
इन्द्रियों का अश्व 
भाग रहा है
रथी अश्वों को 
बस देख रहा
ना साध रहा है ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव
नव जीवन विहार विन्ध्य नगर
सिंगरौली
दिनांक : ०९ . ०३ . २०२१








मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

अबूझ आकांक्षा

 अबूझ आकांक्षा

 

उत्कंठा
मुक्ति के ,
अनुभूति की
भटकाती सदा ၊

यह प्रकृति है,
मायावी ၊
रची ब्रम्ह की ၊
आलिप्त करती सदा,
हर कण के
कणों को भी ၊
निर्लिप्त केवल
ब्रम्ह ၊

मुक्ति
स्वातन्त्र है ,
गेह से ၊
इन्द्रियों से ,
पंचवायु से ,
मन ,बुद्धि, दंभ से
आधीन जिनके
उत्कंठा पालता ,
प्राणी ၊

अनुभूति
अन्तस का
नाद है ,
निःस्वर
भेदता है
हर क्षेत्र , क्षेत्रज्ञ को
कर सके प्रवेश
विरला इस
गुह्य क्षेत्र में
जो रचता ब्रम्ह है ၊

मुक्ति स्वरूप ,
ब्रम्ह बनने की चाह,
युगों से,
देती रही धरा पर,
अबूझ प्राणियों के,
झुण्ड के झुण्ड ၊

कुछ देवत्व पा
इठलाने लगे
कुछ विदेह बन
इतराने लगे
कुछ दानवों के रूप में
निर्मोहिता का
नग्न नृत्य
धृ पर चतुर्दिक
दिखाने लगे ၊
पर हो सके ना
निर्लिप्त ,
मुक्ति का प्रथम पग ၊
डूबे आकण्ठ,
मायावी सरोवर
नीर में ၊

निर्लिप्तता
यूं कि ज्यूं
पुण्डरीक ၊
कीचक और
जीवन सार जल से भी ,
मुक्तता का
कराता आभास
उसमें ही आकंठ डूब ၊

रहा सदा
अति दुरूह
पग उठाना
प्रथम ၊

आकांक्षाएं, अभिलाषाएं
चाहे जितनी पाल लो
दहलीज से
बाहर निकलने को ,
यदि कोई उद्धत न हो,
क्या करेंगी
उत्कट ईप्सा
यदि पगों को
मंजिलों की
चाह न हो ၊

मायावी ऐश्वर्य
जाल ,
फंसा रखता सदा
गेह, मन ,बुद्धि को ၊
आत्म तत्व से विलग
सुख सागरी जल में
तिरते हम,
बस सोच कर मुक्ति के
आनन्द को,
पालते, लालसा का
भ्रूण हैं ၊
और भौतिक सुखों की चाह में
करते निरन्तर,
भ्रूण वध ၊
मुक्त कर स्वयं को
स्वच्छन्द बन ၊

उमेश , इन्दौर, दिनांक ४ - ५ . ०९. १९


सद्‌ तप

अग्नि दहकती मार्तण्ड मध्य जब
तब  पहुचाता  शीतलता शशि है
अनल वेग से तपता वारिधि जब
तब शीतल कर पाता  वारिद है ၊

तरल,सरल बन,जलता बाती में
दीप, तिमिर तब दूर करे,
अग्निदग्ध हो माटी तपती,
तब वसित, नगरों को वो करे ၊

अतुल्य दाह व पीड़ा सहती
प्रसव जगत तब करती प्रसू
वक्ष स्थल पर दारक हल सह
जग पोषण करती मां भू ၊

सदकर्मों का ताप बढ़े जब
सदगति तब ही देते हैं वसु ၊
सदकर्म करो तप से भी तपो
भयहीन बनों संग हैं जो प्रभू ၊၊

उमेश श्रीवास्तव
केराकत जौनपुर प्रवास
दिनांक २४.१२.२०२०


सोमवार, 21 दिसंबर 2020

पूरी कायनात है मेरा आशियां

गुलजार साहब की  रचना का जवाब देने का प्रयास किया है ,
 यदि पसन्द आये तो दो शब्द अवश्य चाहूंगा : -

पूरी कायनात है मेरा आशियां
घर में गुमसुम यूं बैठूं , जरूरत क्या है

लाख कातिल हों जमाने में यारों
दूर यारों से रहूं !
ऐ जिन्दगी तेरी जरूरत क्या है 

सच कहा , है, बाहर की हवा कातिल
बैठूं घर में !
ऐ मेरे रहनुमा, फिर तेरी जरूरत क्या है

नेमत है जिन्दगी, ये जानता मैं भी
घर बैठ बेज़ार करूं !
फिर इसकी जरूरत क्या है 

दिल बहलाने के लिये न जियो घर में
गलियां सूनी रहें ?
ऐ जिन्दगी , फिर तेरी जरूरत क्या है ?

उमेश श्रीवास्तव
केराकत, जौनपुर प्रवास
दिनांक २१.१२.२०२०

रविवार, 20 दिसंबर 2020

सद्पथ

सद्पथ

 

अज्ञात , ज्ञात हो

भूत बन रहा
जिस क्षण को हम 
भोग रहे
प्रारब्ध बन रहा
हर कर्म हमारा
नव भविष्य निर्माण हेतु ၊


उत्साह,उमंग
प्रेम-तरंग
यदि
हर क्षण की ये
थाती हो
हर कर्म हमारा,
ईंट व गारा,
नव आगात
कल्याण हेतु ၊

आज सींचते 
जिन बीजों को
कल के वृक्ष वही होंगे
क्या बोओगे
बबूल बीज तुम ?
आम्र कुंज 
पहचान हेतु ၊

प्रेम धरा है
कर्म बीज है
उत्साहपूर्ण सदकर्म
करो ,
रश्मि रथी बन
अंध पथों में
प्रेम प्रभा
आह्वान हेतु ၊

उमेश श्रीवास्तव
दिनांक २२.१२.२०२०
केराकत , जौनपुर प्रवास




गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

ग़ज़ल. करते हो प्यार कितना अहसास कराइये

ग़ज़ल

करते हो प्यार कितना अहसास कराइये
गुल बन ना बैठिए, ज़रा, खिल तो जाइए

जल जाएगा ये दिल, जो रीते रहे जलद
बरखा की बन बदरिया, ज़रा , झूम जाइए

सब कुछ किया हमने,मगर,जगा सके न हम
खुद अपने प्यार को ज़रा, अब तो जगाइए

तुमको हंसाने के लिए रोना हमे क़ुबूल
मेरे लिए भी ज़रा , कुछ कर दिखाइए

लुट जाएगी बगिया मेरी , यूँ जी न सकेंगे
जां मेरी जानम मेरी , कुछ जान जाइए

टूटते बिखरते रहे अब तलक तो हम
कुछ सुकू मिले मुझे , दामन बिछाईए

करते हो प्यार कितना अहसास कराइये
गुल बन ना बैठिए, ज़रा, खिल तो जाइए

                     उमेश कुमार श्रीवास्तव

रविवार, 13 दिसंबर 2020

ग़ज़ल. कहाँ से चला था कहाँ आ गया हूँ

ग़ज़ल
कहाँ से चला था कहाँ आ गया हूँ
खड़ी तंग गली में समा मैं गया हूँ

इधर भी उधर भी नज़ारे नहीं अब
नीचे ज़मीं ऊपर सितारे नही अब

दिल तो है बच्चा, मगर खो गया मैं
कशिश में किसी की हूँ सो गया मैं

ना भूला हूँ बचपन के खेलों की दुनिया
ना भुला हूँ अरमां तमन्ना की दुनिया

वो गलियाँ अभी भी रूहों में रची हैं
लटटू की डोरी उंगलियों में फसी है

बिखरी है अब तक वो पिट्टूल की चीपे
डरी थी जो गुड़िया उसकी वो चीखें

वो बारिस की, कागज की किश्ती हमारी
चल रही बोझ ले अब भी जीवन की सारी

वो अमवा की बगिया वो पीपल की छइयां
नदिया किनारों की वो छुप्पम छुपैया

सभी खो गये हैं उजालों में आ के
तमस की नदी के किनारों पे आ के

वो माँ की ममता भरी डाट खाना
आँखों से पिता की वो तरेरा जाना

कमी आज सब की खलती हमे अब
गुम हो गये इस भीड़ में हम जब

ये तरक्की ये सोहरत ये बंगला ये गाड़ी
वो माटी के घरोदे वो पहिए की गाड़ी

बदल लो इनसे सभी मेरे अपने
नही चाहिए छल भरे, छलियों के सपने

न लौटेगा अल्हड़ वो बचपन हमारा
सफ़र है सहरा, है सीढ़ियों का  सहारा

आँखो ने सहरा के टीले दिखाए
जहाँ है दफ़न मेरे बचपन के साए

चलता रहा छोड़ बचपन की गलियाँ
सकरी हो चली हर ख्वाहिशों की गलियाँ

अब  तो यहाँ दम घुटने लगा है
नई ताज़गी से साथ छूटने लगा है

भटकते भटकते कहाँ फँस गया हूँ
कफस में जाँ सा धँस मैं गया हूँ

कहाँ से चला था कहाँ आ गया हूँ
खड़ी तंग गली में समा मैं गया हूँ ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव, जबलपुर दिनांक २८.०६.२०१६


शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

एक शेर के जवाब में दो शेर

मुसाफ़िर शायरी में ये शेर पढ़ा किसका है न मालूम

हमे अपना इश्क तो एकतरफा और अधूरा ही पसन्द है..
पूरा होने पर तो आसमान का चाँद भी घटने लगता है...

जबाब देने को  कीड़ा कुल बुलाया, नज़र है तो जवाब दो शेरों से दिया

१.  चांद आसमां में , न घटता बढ़ता
     बस देखनें का अंदाज बदल देती है तू ၊
     इश्क इक तरफा ..? है फितूर
     पूछ देखो,पथ्थर में आग लगा देती है तू ၊

क्योंकि : - 

२. कदर - ए- इश्क आती कहां है हुश्न को 
     खुद़ पर गुरुर करता रहा है आज तक ၊
     इश्क पूरा कहां है हुश्न बिन
     सबब सदियों से रहा इक तरफा - ए- इश्क
.
प्रयास सही था या नहीं ..? कदरदानों से दाद का इंतजार होगा ।

उमेश श्रीवास्तव

बुधवार, 9 दिसंबर 2020

दो शेर

                       १
वो लिखते हैं लिख कर मिटा देते हैं ,
न जाने क्या है जो दिल में छिपा लेते हैं ၊
                            २
ख्वाब फूल हैं , न छिपा किताबों में तू
ज़र्द हो, दर्द की, दास्तां सुनने को ၊
 
                            उमेश ... ८.१२.२०

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

प्रेम नहीं होता तन से, यह मन की थाती होती है ,
स्नेह तरल घृत साथ रहे, तन जलती बाती होती है ၊

उमेश : ९.१२.२० शिवपुरी

सोमवार, 7 दिसंबर 2020

दो शेर

                       १
वो लिखते हैं लिख कर मिटा देते हैं ,
न जाने क्या है जो दिल में छिपा लेते हैं ၊
                            २
ख्वाब फूल हैं , न छिपा किताबों में तू
ज़र्द हो, दर्द की, दास्तां सुनने को ၊
 
                            उमेश ... ८.१२.२०