ग़ज़ल
वो अपनी तस्वीर को हर रोज बदल देते हैं
तदबीर से हम भी उन्हे दिल में जगह देते हैं
कभी रुखसारों की रंगत दिलकश
कभी लब पे मचलती शोख हँसी
कभी ज़ुल्फो की पेंचो में उलझाती अदा
कभी अँखियों से झाँकती शरारत
इक मीना में भरी इतनी मय की तासीर है
औ कहते हैं कि पी के भी बा-होश रहो
क्या शै है दीदार-ए- हुश्न भी यारों
रोज नई जुंम्बीसे दे, जीना सिखा जाती है
उमेश कुमार श्रीवास्तव ०२.०८.१६ जबलपुर