शिव भोले , शिव भोले
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले ।
प्रलयंकारी रूप ना धर
शिव भोले शिव भोले
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले ।
हे आदि योगी ! आदि माया
दे रही नित नव प्रलोभन
हैं प्रवंचित आज जन जन
बदलती नित नये चोले
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले ।
तांडव कर ना रुद्र बन कर
अभयकारी शिव रूप धर
जो बढ़ रही हैं कलुषिताएं
भस्म हेतु त्रिनेत्र खोलें
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले ।
तुम आदि भी अनन्त भी
आकाश व पाताल भी
इस चर चराचर जगत के
शून्य भी साकार भी ।
आकार लो मेरे प्रभो
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले
विध्वंस के नायक मेरे
तुम श्रृजन के आगार भी
योग निद्रा त्याग दो अब
शुभ श्रृजन शंख निनाद होले ।
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले
संत, योगी, साधुजन
मोहित मुदित भ्रमित हैं
नीर क्षीर विवेक बुद्धि
विलुप्त सबके चित्त हैं
माया जनित आवरण
योग से कर चित्त भोले
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
०३.३० बजे अपरान्ह
दिनांक : १६.०९.२०२२