नज़्म
व शेर
दर्द
कितना है हर अल्फ़ाज़ बता जाता
है,
हर्फ-दर-हर्फ
इक हूक् उठा जाता है
चश्म
दर्द से नम हैं खुशियो से नही,
अश्क
के गिरने का अंदाज बता जाता
है
उमेश
कुमार श्रीवास्तव
मेरे खत का मजमून नहीं तुम पढ़ पाओगे ऐ साकी
बिस्मिल
हरफ़ो पे लहू की चादर अब भी
थोड़ी है बाकी
राजे
नियाज़ करवा दो जो इस दिल से
उस दिल की
चश्मे
ज़ुबाँ वो खत की ,
ज़ुरुरत
ही ना रह जाए बाकी
उमेश
(१२.०५.२०१६)
जल
चुका हूं इस कदर इस इस तरह
।
कि, रात जलता चिराग भी देखा न गया।
शमा रौशन न कर ऐ दोस्त दर्द होता है
जला औरों को, जीने का चलन देखा न गया।
. ..... उमेश 07.05.16
कि, रात जलता चिराग भी देखा न गया।
शमा रौशन न कर ऐ दोस्त दर्द होता है
जला औरों को, जीने का चलन देखा न गया।
. ..... उमेश 07.05.16
कद
बढ़ा के भी ज़हां में लड़खड़ा जाते
हैं लोग
कद बिना भी इस ज़हां में मंजिलें पा जाते हैं लोग
...उमेश 06.05.16
कद बिना भी इस ज़हां में मंजिलें पा जाते हैं लोग
...उमेश 06.05.16
जिस
निगह देखो मुझे मैं ही मिलूंगा
,पाषाण
की प्रतिमा नहीं जो इक सा
दिखूंगा ।
नीर बन बहनें न दो मैं हूं वहां , बन्द कर देखो जरा मैं ही दिखूंगा ।
....उमेश 04.05.16
नीर बन बहनें न दो मैं हूं वहां , बन्द कर देखो जरा मैं ही दिखूंगा ।
....उमेश 04.05.16
यूं
न डूबें हुज़ूर आप तन्हाईयों
में
डूबना है तो उतर देखिए दिल की गहराइयों में
खुद को ऐतबार करानें की जुरूरत है बस
हम तो हमराह बने खड़े आप की परछाईयों में।
....उमेश श्रीवास्तव... 01.05.16
डूबना है तो उतर देखिए दिल की गहराइयों में
खुद को ऐतबार करानें की जुरूरत है बस
हम तो हमराह बने खड़े आप की परछाईयों में।
....उमेश श्रीवास्तव... 01.05.16
फूलों
से भी नाजुक तेरे रूखसारो पर
अपने लब रखते डरता हूं
कही बोसे की कशिश से उन पर कोई दरकन ना आ जाएं
कही बोसे की कशिश से उन पर कोई दरकन ना आ जाएं
बावरा
बदरा कहाँ किसी का होता है
बिन तम्मन्ना ओ तो परवाज़ लिया करता है............उमेश
बिन तम्मन्ना ओ तो परवाज़ लिया करता है............उमेश
अधरो
से छिपाया दर्द तो नयनों ने
कह दिया
पलके जो बन्द की मैनें चेहरे ने बयां किया ।
** उमेश **
पलके जो बन्द की मैनें चेहरे ने बयां किया ।
** उमेश **
अय
चांद इक बार जरा धरती पर आ
जा
खुद ब खुद औकात तेरी तुझको पता चल जायेगी I
**उमेश **
खुद ब खुद औकात तेरी तुझको पता चल जायेगी I
**उमेश **
अय चांद ना मुस्करा जलन पे मेरे
तू भी कभी जला होगा दाग कहते हैं तेरे
अय
चांद तेरे दाग से क्या वास्ता
तपते हुए तन को चांदनी काफी है ।
**उमेश**
तपते हुए तन को चांदनी काफी है ।
**उमेश**
अय
चाँद तुझे देख हसरत जगी छूने
की
पर फिर अहसास जगा कि तू कहां औ मैं क्रहां
**उमेश **
पर फिर अहसास जगा कि तू कहां औ मैं क्रहां
**उमेश **