शाश्वत सत्य
बिदा होना है जब जिसको बिदा वो हो ही जायेगा,
पकड़ता क्यूं है, यूं बाहें, नही तू रोक पायेगा ၊
मुसाफिर था मुसाफिर है, चलना ही वो बस जाने ,
उसे तू रोकता क्यूं है, पलट वो फिर न आयेगा ၊
अरे तू रो रहा क्यूं है , उसे क्या जानता था तू !
जो माटी मानता अपनी , उसे वो छोड़ जायेगा ၊
अंधेरे से वो आया था वहीं वह लुप्त हुआ अब है
उजाले में खड़ा तू है, तू कैसे देख पायेगा ၊
यहां सब यायावर, न कोई संगी साथी है ,
तू अपना ध्येय नियत कर ले, धरा से तू भी जायेगा ၊
उमेश कुमार श्रीवास्तव
शिवपुरी, दिनांक ०३.०६.२०२१