शुक्रवार, 27 जून 2025

क्यूं रोता है

क्यूं रोता है

गीता कहती क्यूं रोता है
कौन था वो ! जिस पर रोता है
जन्म पूर्व अज्ञात रहा जो
स्वयं था आया स्वयं गया जो
उस हेतु ये क्रन्दन क्यूं करता है
गीता कहती क्यूं रोता है

वह एकाकी यायावर था 
आदि काल से अनन्त काल तक
कर्म जनित प्रारब्ध साथ ले
ध्येय धरा का, पथिक निरन्तर
उसका पथ कंटक क्यूं होता है
गीता कहती क्यूं रोता है

जितने क्षण का कर्म भोग था
भोग, धरा से गया पथिक वो
शेष कर्म का ऋण भरने को
या मुक्त किसी को कर जाने को
प्रारब्ध मर्म कब सोता है
गीता कहती क्यूं रोता है

तू भी तो बस भोग रहा है 
प्रारब्ध बने हुए कर्मों को
तू भी इक दिन जायेगा ही
संचित कर के अपने कर्मों को
उऋण कहां कोई होता है
गीता कहती क्यूं रोता है

मोक्ष यहां बस उसने पाया
साक्षी बन जो कर्म निभाया
निर्लिप्त जगत में रह सकते हो ?
सबमें स्व को लख सकते हो ?
नहीं ! तब धैर्य यूं क्यूं खोता है
गीता कहती क्यूं रोता है

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक :  ३०.०६.२५





अबूझ अनन्त 

गुरुवार, 26 जून 2025

प्रेम

यदि किसी हृदय में 
स्पन्दित होता है, प्रेम ,
ना जाने क्यूं ,
हृदय मेरा
अनायास ही , 
गीत प्रेम का गा उठता है ၊
और बनाने पुष्प ,
हर मुकुल ह्रदय को,
एकाकी ही,भ्रमर सदृष्य
गुंजित हो उठता है

घृणा ,क्रोध की
छल , कपट की
लोभ , मोह की
जो अनगिनत तरंगे
चहुदिश छाई
उन घोर तमस की 
बदली से,
तड़ित सदृष्य
प्रेम रश्मि मोहित कर देती
और ह्रदय मेरा
दीपस्तम्भ सा
उसे भेजता सन्देश 
समधरा पर
आने को
प्रमुदित हो,
"जीवन मधुमय प्रेम पुष्प"
यह बतला 
तम के कंटक दलदल से
ना घबराने को ၊

संघर्ष सदा है जीवन
पर आनन्द वहीं है
संघर्षहीन पथ 
रस स्वाद औ गंधहीन
बस भोग देह ,वह 
जीवन आनन्द नही है ၊

प्रेम सुधा से सान 
ईश ने यह गेह रची है
जगा उसे 
खुद जाग ,प्रेममय कर,
हर क्रिया ,कर्म को
अमर नही तू , तू भी जायेगा ही
पर,संघर्षों से जीवन के,
यूं हार मान कर,
अपने ही हाथों ,
अपने,अद्‌भुत जीवन को
ना मिटा इसे ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव
इन्दौर
दिनांक 27.06.2020