गीता कहती क्यूं रोता है
कौन था वो ! जिस पर रोता है
जन्म पूर्व अज्ञात रहा जो
स्वयं था आया स्वयं गया जो
उस हेतु ये क्रन्दन क्यूं करता है
गीता कहती क्यूं रोता है
वह एकाकी यायावर था
आदि काल से अनन्त काल तक
कर्म जनित प्रारब्ध साथ ले
ध्येय धरा का, पथिक निरन्तर
उसका पथ कंटक क्यूं होता है
गीता कहती क्यूं रोता है
जितने क्षण का कर्म भोग था
भोग, धरा से गया पथिक वो
शेष कर्म का ऋण भरने को
या मुक्त किसी को कर जाने को
प्रारब्ध मर्म कब सोता है
गीता कहती क्यूं रोता है
तू भी तो बस भोग रहा है
प्रारब्ध बने हुए कर्मों को
तू भी इक दिन जायेगा ही
संचित कर के अपने कर्मों को
उऋण कहां कोई होता है
गीता कहती क्यूं रोता है
मोक्ष यहां बस उसने पाया
साक्षी बन जो कर्म निभाया
निर्लिप्त जगत में रह सकते हो ?
सबमें स्व को लख सकते हो ?
नहीं ! तब धैर्य यूं क्यूं खोता है
गीता कहती क्यूं रोता है
उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : ३०.०६.२५
अबूझ अनन्त