ग़ज़ल (ढूँढा बहोत हर कहीं)
ढूँढा बहोत हर कहीं , न मिला कोई जबाब
क्या हो गया जनाब, क्यूँ छुप गये हैं आप
अठखेलियों में, किसी के, दिल से न खेलना
छिप जाए ना किसी के दिल का ही आफताब
हमनें किसी को अब तलक देखा न इस निगह
चश्में-करम दिखा फिर , क्यूँ पलटे बता दें आप
तरन्नुम बना है शोर अब, मेरे इस जिगर में
बन के ख्याब यूँ क्यूँ , नींदों में छाए आप ?
कुछ तो होगा दिल में, जो नाम था लिया
मैने पुकारा तो क्यूँ, बने अजनबी जनाब
अब तो करो करम की रौनक लौट आए
मेरा चैन मुझको , अब दे दीजिए जनाब
ढूँढा बहोत हर कहीं , न मिला कोई जबाब
क्या हो गया जनाब, क्यूँ छुप गये हैं आप
उमेश कुमार श्रीवास्तव(०२.०४.२०१६)
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