जीवन
की
राह
मैं
जीता
हूँ
टुकड़ो
में, हर
पल
को
इक
जीवन
मान
जीवन
है
इक
अबूझ
पहेली,क्यूँ,
कैसी,हो
झूठी
शान
अगले
पल
की
खबर
नहीं
जब, क्यूँ
न जीऊं
हर
पल
को
रेवा
तट
बालू
पर
बैठूं
या
तका
करूँ
मैं
मलमल
को
तेरे
सुख
से
ना
खुश
होंगे
सब, ना
दुःख
तेरा
तडपाएगा
ना
जी
जीवन
किसी
और
का, अपना
भी
खोता
जाएगा
सब
के
अपने
दुःख
सुख
हैं
काल
चक्र
का
खेल
है
ये
पल
पल
जी
ले
अपना
जीवन
आदि
शक्ति
का
मेल
है
ये
पर
जान
ले
जीवन
क्या
है, जिसे
मैं
जीना
कहता
हूँ
जो
मैं
जीता
हूँ
हर
पल,परे
मौत
जो
कहता
हूँ
आन
रखो
पर
शान
नहीं, मान
रहे
अभिमान
नहीं
प्रज्ञा
संग
ज्ञान
रहे
पर,अहंकार
कृति
गान
नही
धन
दौलत
,पद,
बल
से, क्या
आनंद
खरीदा
जा
है
सका
मृगमारीचिका
ने
अब
तक
क्या
प्यास
किसी
की
बुझा
है
सका
अंतस
शुद्ध
रखो
जो
सदा, सब
में
प्रतिबिंबित
होगे
तुम
दे
न
सकोगे
दुःख
उन्हे
बस
सुख
उन्हे
बाँटोगे
तुम
कर्म
राह
को
सीधी
रखना
सुख
श्रोत
यही
है
जीवन
का
दुःख
मिले
राह
में
तो
जानो
कर्म
फलों
का
ये
है
लेखा
सुख
कपोत
को
खुला
गगन
दो
लौट
लौट
वो
आएगा
दुःख
बस
है
इक
आगंतुक
कहाँ
ठहर
वो
पाएगा
सानिध्य
मिले
जिसे
तुम्हारा
चाहे
वह
हो
क्षण
भर
का
दुःख
का
कण
हर, हर
लो
उसका
दे
दो
सुख
घट
भर
का
हर
क्षण
जी
लो
ऐसा
जीवन
भूल
रहो
कल
क्या
होगा
सुख
शान्ति
नहीं
जब
जीवन
में, तो
जीवन
का
ही
क्या
होगा
मौत
आ रही
हो
अगले
पल, भय,
चिंतन
क्या
करना
जब
जीवन
ही
है
इक
क्षण
का
युगों
युगों
का
क्या
करना
उमेश
कुमार
श्रीवास्तव
(२९.०४.२०१६)
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