तप्त कौमुदी
ऐ चांद तू निकल जरा
ऐ चांद तू निकल जरा
आयाम पर चल जरा
देख मेरी प्यास को
सूखते अहसास को ၊
मैं तो बस चल रहा
रीता रीता पल रहा
जिन्दगी की चाह में
सुलग सुलग,जल रहा ၊
ऐ चांदनी , यूं गुमां न कर
संग आ , आह भर
तप्त हो निखर ज़रा
है दिलजले का मशविरा ၊
न कुछ भी हूं चाहता
प्यार का अहसास ला
तू मुझे निरख जरा
अहसास प्यार के जगा ၊
मुझको न कोई चाह है
चाहत तेरी, इक चाह है
इक निगह बस प्यार की
जिन्दगी न्यौछार है ၊
ऐ चांद रूख बदल ज़रा
नज़र, मेरी नज़र से मिला
दर्द मिले गर उधर जरा
लगा पता है क्या माज़रा ၊
तू ही अगर मेरी धूप है
दर्द का मेरे, रूप है
बदल जरा बदल जरा
मेरी कौमुदी तू बदल जरा ၊
उमेश श्रीवास्तव
७.५.२० इन्दौर
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