जीवन तृषा की तृप्ति
स्वाती बून्द मिली कब किसको ?
पपिहा सम, तड़प, जगे तन जिसको
तन मन जरे , हिय अगन तपन से
तृप्त करे , तब , जलधर आ उसको ၊
है बून्द वह रसराज की ,
पर खोजती तपता बदन ,
तृप्त करती बस उसे ,
करता उसे जो, सब समर्पण ၊
प्यास बुझती ही रही
जग प्यास में चलता रहा
है मलंग जो, नेह में
बस तृप्त वह होता रहा ၊
उमेश कुमार श्रीवास्तव
शिवपुरी , २८.१०.२०
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