गज़ल
सोचते सब मुझे,तकलीफ़ नहीं कोई ।
बदगुमानियां ना करा ,तब्बस्सुम लिये चेहरे
दर्द की मेरे ,कोई परवाह नहीं करता ।
खुदगर्ज ना बन सका, बीती जिन्दगी,
खुदगर्ज कह मुझे, सदा, सताता ये जहां ।
ख्वाब सा हूं जी रहा ,लोगों के बीच मैं,
तकदीर ख्वाब की यही, जग, भूलता जहां ।
था मलंग ,हूं मलंग ,मलंग ही रहूं
रब से यही तकदीर, मैं, मांगता सदा ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
वाराणसी , दिनांक १३. ०३. २०२२
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