व्यथा
ऐ दामिनी
न इतरा यूं
पयोधर की बन
प्रेयसी
गणिका
न वारिस तू
वारिद की
तू बस अभिसारिका
ये नर्तन तेरा
व्यर्थ
न जमा धौंस
इन नगाड़ों की
रीता है, हिय
कर्ण द्वय
सुन्न, ग्रहण न करेंगे
स्वर इनके बेढब
आरूढ़ अषाढी
मेघ सीस
हे मेघप्रिया
न खो आपा
सौदामिनी
सौम्य हो जा
ये घन जो रीता
चुक जायेगी
श्वेत वसन में
वासना का त्याग कर
जलधर त्याग देगा
तो क्या करेगी
ऐ चंचला
मैं वियोगी
सह रहा व्यथा
विरह
ये हास तेरा
परिहास बन
चुभन दे रहा
हिय को मेरे
आहों की मेरी
न बाट तक तू
मदन सा तेरा
हश्र हो ना
हूं भयभीत
परिणति पर
तेरी
ऐ चपला
उमेश कुमार श्रीवास्तव ,जबलपुर, दिनांक ११.०७.२०१७
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