नहीं चाहिए जग से कुछ भी, नही रही भोग अभिलाषा
नही कामना, इच्छा कोई, काम वासना विस्मृत सारी ।
राग द्वेष के भाव रहे ना, ममता से पहचान न कोई
अहंकार भी सुप्त पड़ा है, न आश्रय जग कण के हूं ।
मैं निराशी: बस प्रभू मेरे, "वयं रक्षामि" कहा है जिसने
गोविन्द मेरे गोपाल मेरे, बस मैं उनका, हैं प्रभु मेरे
रहूं बना बस , ऐसे जग में, करूं वन्दना प्रभु चरणों में
पाप मेरे, सब पुण्य भी मेरे, कर्म मेरा क्या , सब प्रभु तेरे ।
कर्म मेरे सब अर्पण तुझको, अब तो नइय्या पार लगा दे
आवागमन के सभी द्वार , अब, प्रभु मेरे बन्द करा दे ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
भोपाल, दिनांक २१ ०१ २३