हम
मानव या दानव हैं ?
हमने चूँसी है धरती , हमने ही सोखा है पानी
और किसी को तको न यारो , हम सब ने ही की है नादानी
पेड़ खा गये पर्वत खाए , बाग बगीचे जंगल खाए
ताल खा गये तलिया खाई नदियाँ मैली कर लाज न आई
खेत खा गये खलिहान खा गये मेहनतकर किसान खा गये
ऐश्वर्य भोगने के निमित्त प्राणवायु व , ओज़ोन खा गये
प्रकृति मातु की गोद बैठ, अब जीना ही हम भूल गये
कुच प्रकृति का पान न कर हम, माँ का स्तन खा गये
भोग भोग अरू भोग भोग क्या क्या तू भोगेगा रे मानव
अपनी संतति के निमित्त, क्या "मंगल" छोड़ेगा मानव ?
ताल तलैया नदिया पोखर वन उपवन पर्वत मैदान
श्वेद रुधिर माटी की ख़ुश्बू, जो देते थे खेत खलिहान
आज पुकार रहे हैं सब मिल, ऐ मनु की औरस संतान
बदल राह ले, देर न कर अब,मेट न मनु की पहचान
उमेश कुमार श्रीवास्तव 26.12.15
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