मेघ
इतना
ना
उड़
ऊपर
मेघा
कि
रीता
रीता
कहलाए
गुरुता
ला
खुद
में
थोड़ी
झुकना
भी
थोड़ा
आ जाए
जितना
ऊपर
उठता
तू
है
कलुषित
काया
हो
जाती
थोड़ी
सी
अमी
पर
हित
ले
झुके
तो
तेरी
ये
छवि
है
धुल
जाती
चातक
तकते
पपिहा
तकते
सीप
तके
गज, बाँस
तके
हो
न
निराश
धरा
संतति
मेघा
जो
ज़रा
तू
दंभ
तजे
झुक,
नीर
बना, हर्षित
हो
कर
बन,
पीर-हरा,
प्रमुदित
हो
कर
कर
दान, सुधा,
जग
तारण
को
राधेय
हृदय
सा
आलोकित
हो
कर
उमेश
कुमार
श्रीवास्तव
, जबलपुर,
दिनांक
२८.०६.२०१६
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