हसरते चाह
तुमको सुकूं मैं दे सकूं'
यूं बेसुकूं रहता हूं मै
गुल खिलें रुख्सार पे
यूं दर्दे ख़ार चुनता हूं मैं
तुम खिल के मुस्कुरा सको
यूं गम तेरे चुनता हूं मैं
तुम सबा बनी बहा करो
यूं खिज़ा के संग पलता हूं मैं
मायूसियत कभी किसी
मोड़ तुझे न आ मिले
हर मोड़ पे तेरी राह के
यूं मुंतजर रहता हूं मैं
मेरी हर खुशी तेरे दर पे है
तेरे गम का आसरा हूं मैं
इक तब्बस्सुम चाह ले
यूं जला करता हूं मैं
तू फकत मुस्कराए जा
मेरे अश्क पे तू कभी न जा
मेरे गम मुझे अजीज़ हैं
यूं राह इस चलाता हूं मैं
तेरी जिन्दगी का नाख़ुदा
बस यूं ही नही हूं मै बना
तेरे रंजो गम वो दर्द की.
यूं इम्तहां करता हूं मैं
ये ही फकत है आरजू
देखूं तुझे हर मोड़ पे
तू मुझे तकती ज्यूं सदा
यूं ही तुझे मैं तका करूं ।
उमेश श्रीवास्तव २७.०१.२०१७ जबलपुर
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