तेरा जन्म दिवस !
तू तो ,
अजर, अमर, अविनाशी है ।
आत्म-नीर बिन्दु सम
रही शाश्वत
साकार जगत की काशी है ।
जन्मदात्रि तू
अखिल विश्व की
ना जन्मी तू
अवतरित हुई ।
हम पायें सुरभित वसु
ले ब्रम्ह रूप पल्लवित हुई ।
जब जब धरा पर आये हम
तेरे ही अंकों में खेले
तेरे ही आंचल छांव तले
हर शीत , ग्रीष्म, बरखा झेले।
हर ज्ञान,ध्यान, विज्ञान हमें
तूने ही अर्पित किया सदा
इक माटी के लोंदे को
मनु अंश बना तारा है सदा ।
हर प्राण तुझी से
उत्सर्जित
हर ज्ञान तुझी से
आलोकित
इस जीवन के हर क्षण कण का
आमोद तुझी से आलोकित ।
अवतरण दिवस है यह तेरा
जन्म दिवस क्यूं मैं मानूं
जननी बिन जग क्या संम्भव ?
ब्रम्ह तुझे क्यूं ना मानूं
आकार व्रम्ह ने दिया स्वयं को
तू ब्रम्ह रूप में आई है,
हूं अंश तेरा,मैं भी अविनाशी
बस यही खुशी मनाऊं मैं ।
तेरी छाया अनवरत रहे,
स्नेह,दुलार आशीष लिये
तू स्वस्थ्य और सानन्द रहे
हर रोम मेरा यह चाह लिये ।
आपके स्नेहाकांक्षी
उमेश कुमार श्रीवास्तव,
श्रीमती अनुपमा श्रीवास्तव,
शिवांशु श्रीवास्तव
शिवपुरी (म०प्र०)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें