आजमा के देखें, मेवे वो खुसूसी मज़ा देते हैं ।
ताज़े फलों का क्या,गिरे फटे लिज़लिजे हुए
सूखे मेवे हैं कि सबकी रंगत बदल देते हैं ।
मज़ा चाहें गर, जिग़र, जान, तन-ओ-बदन का
खब्ती जहां में जुनूनी बन मज़ा लेने का
रंगत पे ना जायें, सब चिकने चुपड़े हैं यहां ,
मेवे में ही है कूबत, अन्दरूनी मज़ा देने का ।
ताज़ो में,ना हुनर , ना ही तहजीब है ,
बस नाजो अदा की ही वो तस्वीर हैं ,
तजुर्बे की झुर्रियां भर सूखे हैं मेवे ,
अन्दरूनी सुकूं बाहरी ताज़गी से भर देते हैं ।
जहन्नुम जन्नत सा है फरक
जान सको , जो,ताजे सूखे का मरम
एक नफ़ासत से भरा ,बस खींचे तन मन ,
दूजा अर्क-ए-तजुर्बे से , हर गुल खिला देते हैं l
आ करीब जरा,नजदीकियां बढ़ा,देखो
लबों पे रख , चश्मों से पिला कर देखो ,
खिलेगा बदन ,सुराख-ए-जिश्म खिल जायेंगे
हलक से जो उतरे मेवे , तो जन्नत का मज़ा देते हैं ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव ००
राजभवन भोपाल
दिनांक : २२.१२.२२