शपथ ग्रहण का
सूबे के काबीना का
कर्तव्यबद्ध थे सभी विज्ञजन
जनसमुद्र में जाने को ।
तत्परता से चले सभी थे
अपने अपने पोतों से
लहरों पर हिचकोले खाते
बचते भवरों के गोतों से ।
बडी भंवर ने ऐसा रोका
सभी धरा पर उतर रहे
दूर थी मंजिल शीघ्र पहुंचना
इतर राह सब निरख रहे ।
दिखा विवर इक खंडित दरवाजा
लालाइत सब बढ़े उधर
सजग था प्रहरी अवरोध लगाये
पर हिकमत से गये उतर ।
किंचित दर्शन लाभ लिया फिर
बैठक को प्रस्थान किया
पहुँच वहां जो पाया हमने
जैसे विप्लवआह्वान किया ।
तनिक ठिठक लहरों को तोला
तृण सा पाया जब खुद को
रणछोड़ ही बनना उचित जान तब
रण से बाहर प्रस्थान किया ।
राह सरल कहां थी वह भी
चहुं दिश अवरोधक अथाह सगर
भीटा एक बना अवलम्ब
कूद चढ़े तब पाई डगर ।
शपथ ग्रहण का यह उत्सव
स्मृतियों में अब अजर अमर
कशम तीसरी खाई मन ने
ना जायेंगे अब ऐसी डगर ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
१४-१५ दिसम्बर २०२३
राजभवन , भोपाल
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