चुपचाप नही बैठा यूं हूं
जान रहा सब की सब कुछ
बस बेज़ार हुआ बैठा यूं हूं ।
राह बनी चलने को तो
कहीं न कहीं जाती होगी
कहां है जाना पूछ रही वो
असमंजस में बैठा यूं हूं ।
कहोगे पागल कह लो हक है
दीवाने की राह चुनी जो
हस लूं रो लूं या गा लूं
ले सोच यही बैठा यूं हूं ।
जन्नत दोज़ख नही जानता
जिसमें भेजो जा रह लूंगा
कह दो मुझको बस जाने को
सुनने भर को बैठा यूं हूं ।
गढ़ने को तो मैं भी गढ़ सकता
जीने के सोपान बहुत
पर, नीरवता मुझको प्यारी
रिक्त चित्त ले बैठा यूं हूं ।
उमेश श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : २१ . ११ . २४
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