प्यार , बेसुमार
जब वह देखती है मुझे ,
उसके भाव समर्पित से लगते है
मुझे ।
आंखों से वह,
तौलती सी लगती है मुझे ;
महसूसता हूं मैं
उसका छूना ,
अपने माथे पर, आखों पर,
ओठों पर,
नजरों के सहारे ;
और बिछ जाना
अपने वक्ष स्थल पर,
उसके सूक्ष्म बदन का ।
बहुत कुछ कह देती हैं
उसकी आंखे
व चेहरे के भाव
जो वाणी की अवरुद्ध गति
कह न पाती है उसकी ।
मर्यादाओं की सीमा
कितनी कठोर होती है
वह कहां जानती
मृदु हृदय की विवसता
उस निस्पृह को कहां ज्ञात
पीड़ा की गति व
संवेदनाओं का मोल
उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन, भोपाल
दिनांक ०५ . ०२ . २०२५
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें