बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

अहसास

उसकी आखों में मैने देखा है
प्यार , बेसुमार
जब वह देखती है मुझे ,
उसके भाव समर्पित से लगते है
मुझे ।
आंखों से वह,
तौलती सी लगती है मुझे ;
महसूसता हूं मैं
उसका छूना ,
अपने माथे पर, आखों पर,
ओठों पर,
नजरों के सहारे ;
और बिछ जाना
अपने वक्ष स्थल पर,
उसके सूक्ष्म बदन का ।

बहुत कुछ कह देती हैं
उसकी आंखे 
व चेहरे के भाव
जो वाणी की अवरुद्ध गति
कह न पाती है उसकी ।

मर्यादाओं की सीमा
कितनी कठोर होती है
वह कहां जानती 
मृदु हृदय की विवसता
उस निस्पृह को कहां ज्ञात
पीड़ा की गति व
संवेदनाओं का मोल



उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन, भोपाल
दिनांक ०५ . ०२ . २०२५

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