बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

खुद को ढूढ़ा बहोत, फिजाओं में
मिली न कोई खबर , हवाओं में
सर्द रातों में , जल उठी रूह मेरी
ताब इतनी थी , मेरे नालों  में

खड़कते पत्ते कहीं जो राहों पर
लगता जैसे अब मेरा दीदार हुआ
खौफजदा ताकूं सूनी राहों को
इल्म हो क्यूंकर जो दीदार हुआ

उम्र गुजरी बेज़ार रहते
वक्त फ़ना होने का, अब तलबगार हुआ
ऐ ख़ुदा ! मेरा नाखुदा बन
कस्ती डूबती जब मझधार हुआ


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें