मिली न कोई खबर , हवाओं में
सर्द रातों में , जल उठी रूह मेरी
ताब इतनी थी , मेरे नालों में
खड़कते पत्ते कहीं जो राहों पर
लगता जैसे अब मेरा दीदार हुआ
खौफजदा ताकूं सूनी राहों को
इल्म हो क्यूंकर जो दीदार हुआ
उम्र गुजरी बेज़ार रहते
वक्त फ़ना होने का, अब तलबगार हुआ
ऐ ख़ुदा ! मेरा नाखुदा बन
कस्ती डूबती जब मझधार हुआ
तिरी इबादत में सिर नगू करता
नज़र उठती नही यूं वजू करता
पास तू है या नही क्या जानूं
फ़ना तुझमें हूं ये यकीं करता ।
कातिल तू ही रहनुमा तू ही
दिल को ऐसा क्यूं ऐतबार आया
कोई महका कहीं फिजाओ में
जैसे खिजा को खुमार आया
उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , पचमढ़ी
दिनांक १४ .०८.२५
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