तुझे ना चाहूं मैं
श्याम घनेरी छांव तेरी
बलि जाऊं मैं
लख छवि तोरी, हो विभोर
नित गाऊं मैं
ओढ़े पीत गात तुम मोरा
सबही को भरमाऊं मैं
ताक रहे ले नयन बावरे
कैसे हिय बचाऊं मैं
वंशी धुन अन्तस में उतरी
कैसे राग मिलाऊ मैं
हो कहते तुम हुए पराये
संग हर पल राश रचाऊ मैं
जाओ कान्हा तुम झूठे हो
कैसे प्रीत निभाऊ मैं
उमेश कुमार श्रीवास्तव
०३ ०३ २०२५ / २.३२ रात्रि
भोपाल एक्सप्रेस
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