चरेवेति चरेवेति
यात्राओं का अन्त कहां !
निरन्तर
आदि ही है इसकी
अन्त कहां
चरेवेति चरेवेति
अनन्त से
अनन्त की ओर गमन
वह भी निरन्तर
हर पल बढ़ते पग
गंतव्य जो उसकी
है किसे खबर
यह क्षणिक यात्रा
व्यथित न हो
जाना दूर
इस गंगे से उस गंगे
परिभ्रमण निरन्तर
ऐ पथिक
हो भ्रमित न ठहर
बस चल निरन्तर
यात्रा सार्थक
ठहराव निरर्थक ।
इक पथिक " उमेश '
दिनांक ६ अप्रेल २०२५
राजभवन , भोपाल
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