जिसे जमाने को, करीने से बतानी है
खुली किताब के पन्नों को कोई पढ़ता है ?
जो पढ़ाना है तो जिल्द भी चढ़ानी है ।
परदों में छिपी हर चीज खूब सूरत है
सूरतें खूब हों,जो उघड़ी तो बेमानी हैं ।
न खुल इतनाr, ज्यूं आसमां हो तू
न छिपा सके जज्बात जो छिपानी है
अदावत रख ज़रा जमाने के वसूलों से
खुली मुठ्ठी सा, नही तो तू बेमानी है ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
रिवांचल एक्सप्रेस ट्रेन
दिनांक : २९ . ०४ . २०२५ ।
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