मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

छिपा के रख

छिपा के रख, हर वो बात, जो सयानी है
जिसे जमाने को, करीने से बतानी है

खुली किताब के पन्नों को कोई पढ़ता है ?
जो पढ़ाना है तो जिल्द भी चढ़ानी है ।

परदों में छिपी हर चीज खूब सूरत है
सूरतें खूब हों,जो उघड़ी तो बेमानी हैं ।

न खुल इतनाr, ज्यूं आसमां हो तू
न छिपा सके जज्बात जो छिपानी है 

अदावत रख ज़रा जमाने के वसूलों से
खुली मुठ्ठी सा, नही तो तू बेमानी है ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
रिवांचल एक्सप्रेस ट्रेन
दिनांक : २९ . ०४ . २०२५ ।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें