भटकाव भरा यह जीवन था
चहुंदिश केवल तम ही तम था
तड़प रहा अन्तरमन था ।
कृष्ण विवर सा अहम् शून्य था
पर अवशोषित वहां सभी था
शुष्क, आद्र, तरल जीवन था
भष्म तमाग्नि में पर चिन्तन था ।
धैर्य धरा पर जब तुम आये
चिन्तन जागा तुम मुस्काये
तम अवशोषित काया ले कर
विवेक जगा कर धैर्य जगाये ।
मधुर तेरी मुस्कानों से
स्वर लहरी जो मचल चली
मेरे अन्तस के पोर पोर में
उमंग नई किसलय सी पली ।
तेरी सांसों की छंदों में
वीणा का मेल भी मिलता है
भौतिकता के अनगूंज गूंज में
रस सरगम सा घुलता है ।
तिमिर छटा,आलोक है छाया
खड़ी है सम्मुख, तेरी काया
बदल रही माया की डोरी
शिव सम्मुख हूं जब से आया ।
ना है भटकन ना ही तम है
तरल सरल सा जीवन है
बस हूं मैं और, तू ही तू है
मन अन्तस है अन्तस मन है ।
हूं अब बैठा तुझ संग भोले
जो होना जीवन को हो ले
कर धारणा हूं ध्यान में बैठा
जगी समाधी शरण में ले ले ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : ०४.०९.२०२५
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