गुरुवार, 11 सितंबर 2025

शेर

न काम से आयें न बुलाने से आयें
तासीर तो तभी जब बहाने से आयें ।

शनिवार, 6 सितंबर 2025

अन्धकार में बैठा मैं था
भटकाव भरा यह जीवन था 
चहुंदिश केवल तम ही तम था
तड़प रहा अन्तरमन था ।

कृष्ण विवर सा अहम् शून्य था
पर अवशोषित वहां सभी था
शुष्क, आद्र, तरल जीवन था  
भष्म तमाग्नि में पर चिन्तन था ।

धैर्य धरा पर जब तुम आये
चिन्तन जागा तुम मुस्काये 
तम अवशोषित काया ले कर
विवेक जगा कर धैर्य जगाये ।

मधुर तेरी मुस्कानों से
स्वर लहरी जो मचल चली
मेरे अन्तस के पोर पोर में
उमंग नई किसलय सी पली ।

तेरी सांसों की छंदों में
वीणा का मेल भी मिलता है
भौतिकता के अनगूंज गूंज में
रस सरगम सा घुलता है ।

तिमिर छटा,आलोक है छाया
खड़ी है सम्मुख, तेरी काया
बदल रही माया की डोरी
शिव सम्मुख हूं जब से आया ।

ना है भटकन ना ही तम है
तरल सरल सा जीवन है
बस हूं मैं और, तू ही तू है
मन अन्तस है अन्तस मन है ।

हूं अब बैठा तुझ संग भोले
जो होना जीवन को हो ले
कर धारणा हूं ध्यान में बैठा 
जगी समाधी शरण में ले ले ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : ०४.०९.२०२५




बुधवार, 3 सितंबर 2025

गज़ल : अय यार तेरी सोहबत में

गजल

अय यार तेरी सोहबत में हम 
हंस भी न सके रो भी न सके ।
किया ऐसा तुने दिल पे सितम 
चुप रह भी न सके औ कह भी न सके।

बेदर्द जमाना था ही मगर'
हंसने पे न थी कोई पाबन्दी
खारों पे सजे गुलदस्ते बन
खिल भी न सके मुरझा न सके

हम जीते थे बिन्दास जहां
औरों की कहां कब परवा की
पर आज तेरी खुशियों के लिये
खुश रह न सके गम सह न सके

हल्की सी तेरी इक जुंबिस
रुत ही बदल कर रख देती
पर आज दूर तक सहरा ये
तप भी न सके न जल ही सके

जब साथ न देना था तुमको
तो दिल यूं लगाया ही क्यूं था
यूं दम मेरा तुम ले हो गये 
ना जी ही सके ना मर ही सके ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव ०४.०९.१६

शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

मुक्तक

बे ख्याली मेरी तूने दिल से लगा ली 
बिना जाने की ख्यालों मे तेरी किस कदर डूबा था मैं 
धड़कन ,दिल औ लहू ए जिगर के कतरे से पूछ ज़रा 
ओ तेरा है या मेरा उसे मालूम है क्या.......उमेश

बुधवार, 20 अगस्त 2025

मदमस्त सूरत

नूर चमकती आंखो की , 
रूख्सारों की दमकती ये  लाली
गेसू में झलकती, जो सांझ की मस्ती, 
लब पे जो धरी मदिरा प्याली
इनकी उमर न हो कोई, 
अजर रखे रब की प्याली
यूं ही खुशियां बरसाओ तुम
बरसे इनसे रुत मतवाली

किसी मुखड़े के नूर पर , 
यूं फ़िदा हुआ जाता नहीं।
गर फिदा हो जाये तो , फिर, 
ज़ुदा हुआ जाता नहीं ।


उमेश कुमार श्रीवास्तव
२० अगस्त २०१६

सोमवार, 18 अगस्त 2025

मैं और तू

मुझे चाहिये तू, अन्तस में बैठा क्यूं यूं
भटक रहा था बाहर, अब भीतर आता हूं
छिप सके तो छिप ले छलिये 
स्व छान रहा हूं अब मैं
काया छान चुका हूं कब का
मन माया छान रहा हूं अब मैं 
गन्ध तेरी सु संग ले, बनी राह है मेरी 
श्वान बना हूं फिरता, क्या करे राह अंधेरी
माया ! तेरी ये माया, भ्रमित करेगी कब तक
हूं अंश तेरा जब मैं तो, है विश्वास !
मिल ही लूंगा अब तुझसे ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन, भोपाल
दिनांक २०.०८.२०२५

रविवार, 17 अगस्त 2025

शेर

सभी की अपनी राहें हैं सभी की अपनी है मंजिल
पग दो पग के साथी भी महका जाते राहे मंजिल ।
......उमेश