Meri Gajale Mere Geet (मेरी ग़ज़लें मेरे गीत)
बुधवार, 10 दिसंबर 2025
विकार
विकार
वह नीला आकाश
और नही बहती अब
शीतल मंद सुगन्ध लिये हुए
वह बयार
जो कुछ वर्षों पूर्व
मेरे बचपन से युवा होने की
गतिमान अवधि में
मेरी इन्द्रियों नें अनुभव की थी ।
वह निर्झर कल कल कर बहता
सरिता जल भी
मलिन सा हो चला है
अविरल निर्झरणी का
अपना पद, खो चला है
वो पहाड़ी सोते
पोखर, तालाब, ताल, गढ़इयां
जहां हम गोते लगाते
जिनके तट खाना बनाते
खाते और उसी का जल
गटागट पी जाते
आज मलिन हो सो चुके हैं
या गंदगी के ढेर में
खो चुके हैं ।
वे रंग बिरंगी तितलियां
टिड्डे मेढक व केचुए
जिनके पीछे भागते फिरते थे
झुण्ड के झुण्ड बच्चे
कहां दुबक गये है
दिखते ही नही ढूढ़ने पर भी
इन्हे धरती ने लीला
या आसमान में खो गये हैं ?
गौरय्या , गिद्ध, कौए, चील
ना जाने कितने नभचर
जो धरा की शान थे
अद्भुत कलाकार के
कला की जान थे
जो धरती के कैनवास पर
बिखरे प्राण थे
ढूढने पर ही कदाचित
मिल जायें
जैसे वे भी अलविदा कद रहे हों
मानवीय सभ्यता को ।
ऋतुएं भी अब सुहानी कहां हैं
कब आयें कब जायें
कहां अब इनकी पहचान हैं
अब स्वागत में नही रहता कोई
इनकी आहट घबड़ाहट
लाती है
जबकि ये ही धरा की थाती है
धरा ही अब इनसे परेशान है ।
धुंध और कुहासों के बादलों ने
डेरा सा डाल रखा है
प्राणवायु की खोज में
हर प्राणी इनमें जा धंसा है
हर तन व मन विह्वल हो चला है
प्राण घट रहे हैं पवन बट रहा है
महानगर, नगर, गांव व वनों की
बंटी वायु है अब
प्रतिगमन कर रही
धनकुबेरों की बस्ती
आ रहे सांसत में
वनचर सारे
हे प्रकृति रच दे पुनः
ऐसा कोई आख्यान
स्वच्छ हो धरा
निर्द्वन्द हो हर प्राण ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
लोक भवन , भोपाल
दिनांक : १२.१२.२५
सोमवार, 8 दिसंबर 2025
आनन्द मार्ग
आनन्द मार्ग
साधु प्रवृति न त्यागो तुम
विज्ञ बनो हर ज्ञान धरो संग
आश की डोर न त्यागो तुम
एकाग्र करो मन दृढ़ करो
कोमलता त्याग बल धारो तुम
साधु , विज्ञ , आशावादी
एकाग्र और जो बलशाली
आनन्द उसी के वश में है
यूं पंच राग संधानो तुम ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
लोक भवन , भोपाल
दिनांक : ०९.१२.२०२५
साधु वृत्ति क्या है
साधु वृत्ति धारी वह है जिसका उत्तम सदाचार है और श्रेष्ठ आचरण व्यवहार है जो मोह-माया, लालच जैसे दुर्गुणों से दूर रहता है और दूसरों की सहायता को सदैव तत्पर रहता है; यह एक ऐसी जीवनशैली है जो सादगी, संयम, दया और आत्म-नियंत्रण पर केंद्रित होती है, जहाँ व्यक्ति भौतिक सुखों से ऊपर उठकर आध्यात्मिक शांति की ओर बढ़ता है और दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयास करता है।
सोमवार, 1 दिसंबर 2025
नव वर्ष प्रभात विश्वास
लो आज सुरक्षित हो गई
बाग की हर तृण लताएं
वृक्ष भी खुशियों से
झूमने को आतुर हुए ।
खगवृन्द कलरव कर रहे
सप्त सुर व साज पर
रश्मियां टकरा धरा पर
नृत्य को व्याकुल हुई ।
पुष्प पर मदमस्त अलि
अनुरक्त डोरे डालता
मुकुल, कली फिर पुष्प कैसे
अलि हृदय पहचानता ।
तितलियां भी होड़ देती
फिर रही कलिकाओं पर
सहला रही नद हृदय को
पवन भी सुवास भर ।
शीतल मंद सुगन्ध ले
जो आ रही नव चेतना
कह रही ज्यूं इस धरा की
कर लो सभी आराधना ।
01.12.25
मंगलवार, 25 नवंबर 2025
संताप आलाप (प्रलय की ओर )
भटकते तन
उड़ते मन, चिन्तन
आत्मा का विलाप
अनहद विवर में
संताप ।
प्रकृति , पुरुष
कृष कुरूप
प्राणी,
कैसी सन्तति !
नही चिन्तन !
चिन्तित
धाता पुरुष ।
अतिरेक शोर
रोर नाद
अन्तस तक
देता झकझोर
अति घात
पिंजर के पोर पोर
हो जाते निस्पात ( विनाश )
रक्त - पानी
धमनियां शिराएं
शुष्क नालियों सम
पीड़ित घनघोर ।
किस दिशा जा रहे
प्राण
प्रण विकास का
या विनाश
प्राण का
प्राणीयों से
प्राण शक्ति
पतित पात
कीचक बने
हूहू कर झूमते
निष्प्राण तन
आत्महीन मन
अचिंतित चिन्तन
संकुचित चितवन
मोहित मंद
उलट दिशा में
गमन
धरा धर धैर्य
धीर से अधीर
फिर जग कण कण
विस्तृत से संकुचन
ब्रम्हाण्ड ब्रम्ह
पुन अण्ड ।
अनहद :
- आघात रहित नाद: यह एक ऐसी आंतरिक ध्वनि है जो किसी बाहरी आघात (जैसे किसी वस्तु से टकराना) के बिना ही उत्पन्न होती है। यह ध्यान और योग की गहराइयों में सुनाई देने वाला एक दिव्य संगीत है।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
लखनऊ,
दिनांक : २५.११.२५
रविवार, 23 नवंबर 2025
गज़ल : जिन्दगी परखने को . . .
जिन्दगी परखने को नज़र चाहिए
खुद को परखने को जिगर चाहिए ।
जिन्दगी फलसफा है,मौत की है डगर रूख रुहानी लिये इसकी कदर चाहिए ।
चंद लम्हे बहोत सीखने को मगर
जिन्दगी भी है कम गर बशरह चाहिए । (अच्छी सूचना देने वाला )
गलतियां दूसरों की, हैं दिखती बहोत
देखने को अपनी, ख़ुदाई नजर चाहिए ।
ढूढ़ पाती जो नज़र आपको आप में ही
निगाहों मे बसी, बस वो नज़र चाहिए ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
त्रिवेणी एक्सप्रेस
दिनांक : २३. ११. २५
9131018553
बुधवार, 29 अक्टूबर 2025
मेरे विचार
मेरे विचार
प्रश्न : भावना शून्य की स्थिति क्यों और कब होती है? इस स्थिति का मतलब क्या होता है सर?
उत्तर : भावना क्या है पहले यह जाने
जब किसी व्यक्ति वस्तु या स्थान से लगाव उत्पन्न हो तो मन चिन्तन उससे जुड़ जाता है तो भाव उसके प्रति जगता है उसके हर अच्छे बुरे पहलू को हम चेतना से जुड़ अपना मानने लगते हैं उसका हर सुख दुःख हमे खुशी या दुःख देता है मन की यह दशा ही भावना है ၊
भावना शून्य हुआ ही नही जा सकता,
भाव न जगना पाषणता की निशानी है जहां प्राण है वहां पाषाण नही हो सकता और प्राणवान भावना शून्य नही हो सकता हर प्राण के स्पन्दन में भाव है ၊
प्रश्न : तो मनुष्य पाषाण कब हो जाता है ?
जब मानव के अन्दर का सब सरस भाव सूख जाये
रस का अभाव पाषाण बनाता है ၊
सरसता जीवन है, शरीर के हर अंग से रस बहाना जिससे जग कण कण सरस होता रहे ,जीवन का मूल है ၊
प्रश्न : हूं, और रस का अभाव कब और क्यों होता है ?
जब हम जान बूझ कर रेगिस्तान में अपने जीवन रस को बहा दें जहां रस का अजश्र श्रोत है उसको अनदेखा कर ၊
प्रश्न : तो क्या हमारा स्वयं का भावना शून्य होते जाना यह दर्शाता है कि हमारा प्रेय रेगिस्तान है ?
उत्तर : जीवन रस भाव है जिससे भावना बनती है यदि भाव किसी के प्रति जगे रस प्रवाहित हो उस दिशा में भावना की लहरें उठें ,वे लहरें नौ में से किसी भी रस तरल की हो ,उसके तक पहुंचे और फिर लुप्त हो जायें बिना किसी परिणाम तो हां वह रेगिस्तान है , पर उस तक भावना की लहरों का पहुंचना आवश्यक है , अन्यथा वह रेगिस्तान नहीं है वरन स्वयं में ही कहीं रेगिस्तान बना है जो स्वयं की भावना का शोषण कर रहा है ၊
उमेश कुमार श्रीवास्तव
शिवपुरी , २८.१०.२०
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