छँटी
जो माया तब दरश है पाया
प्रियतम
की काया देखने भटका किए मगर
पाया जो प्रियतम को पास तो तम छटने लगे
पाया जो प्रियतम को पास तो तम छटने लगे
हमने
उन्हे देखा मगर आँखे बंद कर
ऐसे दरश हो गये कि घड़ियाल बज उठे
ऐसे दरश हो गये कि घड़ियाल बज उठे
हमने
उन्हे सुना मगर कानो को बंद
कर
ऐसी बजी सरगम कि हर दीप जल उठे
ऐसी बजी सरगम कि हर दीप जल उठे
हमने
उन्हे पुकारा मगर रसना को बंद
कर
ऐसा घुला बदन की इकसार हो गये
ऐसा घुला बदन की इकसार हो गये
हमने
उन्हे सूँघा मगर रन्ध्रो को
बंद कर
ऐसी गमक भरी कि प्राण वृंदा-वन हो गये
ऐसी गमक भरी कि प्राण वृंदा-वन हो गये
हमने
उन्हे छुआ मगर अस्तित्व को
मिटा
ऐसा हुआ साकार कि हम ब्रम्ह हो गये
ऐसा हुआ साकार कि हम ब्रम्ह हो गये
आत्म
चित्त आकार प्रवृति बुद्धि
अहंकार
"हम" के ये ताने-बाने पा उसे विस्मृत हो गये
"हम" के ये ताने-बाने पा उसे विस्मृत हो गये
उमेश
कुमार श्रीवास्तव (१०.०२.२०१४)
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