अबूझ
संकल्प
मैं
चाहता हूँ गुज़रना उन सभी हदों
से,
जिनको
अभी तक तूने,
बाँधा
ही नही है
मैं
चाहता हूँ ठहरना,
उन
सभी मुकाम पर
जिनको
अभी तक तूने,
गढ़ा
ही नही है
मैं
चाहता हूँ कहना,
हर
उस अनकही को
जिस
हेतु अभी तक तूने,
वाणी
नही गढ़ी है
मैं
चाहता हूँ देखूं,
वह
अदृश्य द्र्श्य तेरा
जिस
दृश्य हेतु तूने,
सोचा
अभी नही है
मैं
चाहता हूँ भोग लूं उस दर्द को
भी
जिस
दर्द का कारक तूने,
सोचा
अभी नही है
मैं
चाहता हूँ हँसना अपनी हर उस
कमी पर
जिनको
अभी तक तूने ,
जग
से कहा नही है
मैं
चाहता हूँ रोना ,अपनी
उन नाकामियों पर
जिनके
काम तूने ,सौपे
ही मुझे नही हैं
पर
क्या करूँ ऐ मालिक बेबस हुए
अश्व सब
रास
छोड़ दी है सारथी ने हो मद
मस्त
माया
जगत असमतल ,
राह
है पथरीली
रथी
है लुहलुहान रथ में उछल उछल
कर
उमेश
कुमार श्रीवास्तव ०५.०२.२०१६
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