प्रेम सुधा की दो बून्दे
सागर को मीठा कर सकती
अमी सदृष्य, जरजर तन को
नव यौवन से हैं भर सकती
उपमायें जितनी दे सकते
जग के शायर औ कवि सारे
सब कम हैं , क्या देंगे वो
इस प्रेम तृषा के मारे ၊
रस प्रेम झरे जग कण कण से
पर भाग पड़े अनुरक्त जगत
अजर रहे अमरत्व लिये
चिर यौवन ज्यूं ये प्रकृति जगत ၊
उमेश १३ .०४ .२०१९ इन्दौर
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