चाहत मेरी
मैं चाहता हूं प्यार से तुमको पुकार लूं
निहार छवि तेरी तुझे दिल में उतार लूं ၊
गंध कस्तूरी तेरी , अंग हो मेरा
पंचांबु से प्राणों में तुझको यूं उतार लूं ၊
चतुरांग से, जो सोम रस , तुझ से रिस रहा
व्याकुल ह्रदय से ,बन रसी अन्तस उतार लूं ၊
तू, तू ना रहे, मैं भी, व्योम हो रहूं
यूं क्षितिज सा गात क्यूं ना मैं संवार लूं ၊
गीत हो संगीत हो या ताल लय की घात
सब विधा में लख तुझे जीवन निखार लूं ၊
उमेश , सिंगरौली , ७.४ .१९
तू, तू ना रहे, मैं भी, व्योम हो रहूं
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