मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

चाहत क्या है, आओ कह दूं
मन के परदे को थोड़ा सरका
अन्तस की बगिया में ले जा
अभिलाषाओं के दर्शन दे दूं
चाहत क्या है , आओ कह दूं ।

सुन्दर हो निर्झरणी जैसी
हो कपास की डलियों जैसी
कचनार पुष्प भी सकुचा जायें
हो रंगत यूं परियाँ जैसी

हिम आलय की झील सी आंखे
केश राशि ज्यूं छाये घन

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