शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024

चांदनी मेरी

मोती छिटकाती हो धरा पर 
रात भर
हो सजाती तृण पात 
कुसुम पाषाण भी
ऐ चांदनी तुम अथक !
क्या चाह ले ?

रजनी संग मेल तेरा
तारों ने लिखा है
आकाश सारा मुग्ध 
लख नक्षत्र सारे 
जो खड़ा अगवानी को
स्वागत में तेरे
क्यूं बिखरी सी लगती हो
तुम पर
कुछ तो कहो
न निः शब्द बैठो
यूं आह भर ।

बात क्या है ?
हो मौन क्यूं ?
विरहाग्नि को शीतल 
कर रही हो
किस अग्नि में 
फिर , तुम यहां ,
यूं जल रही हो

रजनी गई
छोड़ झीना
आवरण
भोर में अरुण ने
रच दी रंगोली
शरमा गई बन तूहिन
चाहतकों की चहेती
चांदनी मेरी ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : ०५ ०५ २०२५



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