इन्सान
तू
तू
बुत
नही
बेजान
है
,
तू
ईश
का
इन्सान
है
।
ठान
बस
तू
ले
अभी
,
रुक
न
पायेगा
कभी
मंजिलें चल आयेगी,
मंजिलें चल आयेगी,
दूर
जा
न
पायेंगी
आन पर तू ले जरा,
आन पर तू ले जरा,
प्यास
जो
तू
भर
जरा
ध्येय पर तू घ्यान दे,
ध्येय पर तू घ्यान दे,
इक
कदम
तो
धर
जरा
सुमन से अट जायेंगी ,
सुमन से अट जायेंगी ,
धरा
तेरी
राह
की
बस जान ले तू कौन है,
बस जान ले तू कौन है,
क्या
कर
नहीं
सकता
है
तू
मौत के आगे भी गर्जन
क्या नहीं करता है तू !
मौत के आगे भी गर्जन
क्या नहीं करता है तू !
उठ
जरा
तू
उठ
जरा
प्रमाद का प्रतिरोध कर
लक्ष्य सम्मुख है तेरे
इन्सान बन संधान कर
प्रमाद का प्रतिरोध कर
लक्ष्य सम्मुख है तेरे
इन्सान बन संधान कर
उमेश
कुमार
श्रीवास्तव,
जबलपुर,
२९.०८.१६
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें