ग़ज़ल
ज़ुल्फो को न सुलझाओ यूँ हाथों से
बेबस दिल को उनमें उलझाया न करो
पलकों को यूँ न गिराओ अदाओं से
पेवस्त खंजर दिल में यूँ कराया न करो
तुम चाहो न चाहो कोई बात नही
मैं जो चाहूं तो इल्ज़ाम यूँ लगाया न करो
शमा बन चाहे करो रौशन महफ़िल
पर अंधेरो सा मुझे यूँ दूर भगाया न करो
भले बैठो हर साख पर तितली बन कर
खार कह मुझको यूँ पराया न करो
हम तो जीते ही हैं तेरे दम पर हमदम
दम जब मेरी तुम, रूठ यूँ जाया न करो
....उमेश कुमार श्रीवास्तव, जबलपुर ०७.०८.२०१६
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