ग़ज़ल
आज
जगते
रहे
हम
यूँ
ही
रात
भर
चाँद
आना
न था
चाँद
आया
नही
बेकरारी
रही
सलवटों
पे
दिखी
लाश
बन
कर
पड़ा
जिश्म
जलता
रहा
लोग
कहते
रहे
है
बादलों
में
छिपा
चाँद
आना
न था
चाँद
आया
नही
ये
पता न चला रूठ कर क्यूँ गया
हम
मनाने की कोशिश कर ना सके
विदा
कह गया , अलविदा
कर गया
चाँद
आना न था चाँद आया नही
आज
कैसे
कहूँ
चाँद
मगरूर
है
जब
दिल
भी
मेरा
साथ
देता
नही
कह
गया
था
उसे
साथ
ले
आएगा
चाँद
आना
न था
चाँद
आया
नही
चन्द
पलों
में
अभी
सुबो
हो
जाएगी
हर
तमन्ना
सबा
संग
खो
जाएगी
हसरतें,
हसरतें
हैं, हसरतों
का
है
क्या
चाँद
आना
न था
चाँद
आया
नही
महताबे
रौशनी
चाँदनी
अलबिदा
जिश्म
से
जा
रही
जां
तुझे
अलविदा
आफताबे
हवाले
ऐ चमन
अलविदा
चाँद
आना
न था
चाँद
आया
नही
उमेश
कुमार
श्रीवास्तव
, जबलपुर
,३१.०८.२०१६
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