गजल
आपको
आप
से
ही
,चुरा
क्यूं
न
लूंआपकी
जो
रज़ा
हो,
गुनगुना
क्यूं
न
लू।
आपकी
शोखियां
मदहोश
कर
गईसोचता
हूं
बे-वजह
मुस्कुरा
क्यूं
न
लूं।
हूं
जानता
आप
मेरे
नहीं, इस
दिल
में
आपके
बसेरे
नहीं
मानते
पर
कहां
दिल
के
जज्बात
हैंइक
घरौंदा
तिरा
मैं
बना
क्यूं
न
लूं।
आप
यूं
चल
दिये
ज्यूं
देखा
नहींरूप
की
धूप
को
चांदनी
से
उढ़ा
चांदनी
से
जला,खाक
बन
जायेगाखाक-ए-बदन
फिर
उड़ा
क्यूं
न
लूं।
कदमों
में
लिपट
चैन
पा
जाऊंगागेसुओं
में
भी
थोड़ा
समा
जाऊंगा
सबा
से
जो
मदद,थोड़ी
मिल
जायेगीबदन
से
लिपट
झिलमिला
क्यूं
न
लूं।
आपको
आप
से
ही
चुरा
क्यूं
न
लूंआपकी
जो
रज़ा
हो
गुनगुना
क्यूं
न
लूं।
उमेश
२८.०८.२०१६
जबलपुर
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