चाहतें दुःखों का हैं डेरा
चाह, मिलेगी खुशी, दुःखी हो गया हूं
चाह, मिलेगी खुशी, दुःखी हो गया हूं
चाह, देने को खुशी , दुःख दे है बैठी
चाहतो बीच खुशी, कब कहां है टिकी
वहां तो रहा बस , दुःखों का ही डेरा ၊
चाहतें न पालो, चाहतें हैं फरेबी ,
घुमाती रहेंगी, भंवर जाल जैसी,
चाह को जिन्दगी में, सुकूनी न मानो,
सुकूं में वही, जिसने इनसे मुह फेरा ၊
उमेश, इंदौर १४.०१.२०२० रात्रि ११.१५
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