मैं बयार सा बहना चाहूं
मैं बयार सा बहना चाहूं
मैं बयार सा बहना चाहूं
प्रमुदित कुसुम दल हिय में
मकरंद बना बस रहना चाहूं
मैं बयार सा बहना चाहूं ၊
हर प्रसून का हिय हिलोरता
प्रेम सुधा से गागर भरता
प्रकृति प्रबन्ध का पालन करता
गरल सभी के हरना चाहूं ,
मैं बयार सा बहना चाहूं ၊
अलकों संग खेलूं, अंको में भर,
कपोल चूम लूं ,अधरों को धर
कुच प्रदेश पर भाल धरूं जब
उर प्रदेश में रमना चाहूं ,
मैं बयार सा बहना चाहूं ၊
बन्द नयन के द्वार जो कर ले
भाव जगत में गोते ले कर
स्मृतियों में, बन, मधुर रागिनी
अनन्त काल तक बजना चाहूं
मैं बयार सा बहना चाहूं ၊
अस्तित्व समर्पित करूं उसे जो
तन मन से सम्पूर्ण करे ,
प्रेमतृप्त उस अन्तस्तल में
सदा तरल बन रहना चाहूं
मैं बयार सा बहना चाहूं ၊
उमेश ,दिनांक २६.०१.२० , जबलपुर-इंदौर यात्रा , ओव्हर नाइट एक्स. देवास
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