*प्रेम* जीवन मेरा
कोपलें फिर फूट आई
कहना उसे,
दिल में मेरे ၊
सदियों पुराने वृक्ष का
हूं ठूंठ मैं,
रस मेरा, हर रन्ध्र में,
ना सूखने देता मुझे ၊
छोड़ दो या तोड़ दो
यूं ही रहूंगा,
प्रेम का प्यासा रहा
प्यासा रहूंगा ၊
निकल अपने रन्ध्र से
फिर से जगूंगा
प्रेम का मकरन्द ही
सुरभित करूंगा ၊
अनुकूल या प्रतिकूल
जैसा भी बना दो
मैं श्याम हूं
श्याम बन फिर उठूंगा ၊
राधा बनी प्रेम रस
झरसा करो तुम
हरित पुष्पित हो
पुनः मैं जी उठूंगा ၊
उमेश कुमार श्रीवास्तव
शिवपुरी , दिनांक : १४.०२.२०२१
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