प्रेम तुम बस बढ़ाया करो
मैं श्याम हूं श्याम बन कर रहूंगा
बस राधा बनी चाहती तुम रहो
प्यासा सदा प्रेम रस का रहा
मेरी प्यास, ये तुम बुझाती रहो ၊
ताना व बाना प्रेम के तन्तुओं का
रंजक मेरा प्रेम का ही धनिक है
जो भी है मुझमें बस प्रेम है
प्यार का प्यार तुम बस बढ़ाती रहो ၊
चाहतें प्यार हैं, आदतें प्यार हैं ,
कर्म भी प्यार है , धर्म भी प्यार है
जीवन का मेरे सार ही प्यार है
रस को मेरे तुम सुरभित बनाती रहो ၊
अंजुलि भरो चाहे ,चाहे गोते लगाओ
प्रेम ही मिलेगा, तरल बन के बहता,
मैं हूं तरल ,भीग जाओगी मुझसे
लिपट जाओ न आंचल बचाती रहो ၊
रसी हूं, रसिक हूं ,हूं प्यासा मैं रसिया
रग रग में मेरे बह रहा प्रेम रस है
प्यासा हूं फिर भी, इसी प्रेम रस का
प्रेम को प्रेम से तुम बस बढ़ाती रहो ၊
उमेश कुमार श्रीवास्तव
नव जीवन विहार कालोनी
विन्ध्य नगर , सिंगरौली
दिनांक ०९.०३.२०२१💐
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें