चन्द शेर (दर्द-ए-दिल)
१
उनकी इश्क की इस अदा को देखो
दर्द हमें तब्बस्सुम गैरों को बांट देते हैं
२
दर्द दिल में जलन आंखों में लिये फिरते हैं
मरीज-ए-इश्क हैं, अश्कबार हुए फिरते हैं
३
उनकी मगरुरियत नालों पे कान देते नही
इक हम हैं कि पुकारे चले जाते हैं
४
उनको फिक्र कहां इश्क की बेकरारी की
उनको फुरसत नही अंजुमन के अपने तारों से
५
नज़रें दर पे कान आहटों पे लगे रहती है
न जाने कब हजूर बेआहट आमद दे दें
नालों--पुकार
अश्कबार---रोता हुआ
मगरूरियत--अंहकारग्रस्त
आमद- उपस्थिति
अंजुमन--महफिल
उमेश श्रीवास्तव , जबलपुर ३०.०१.२०१७
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