विरोधाभाषी दर्शन
कागज की नावों को मैने
तूफां से लड़ते देखा है ,
मजबूत दरियाई बेड़ों को
तट पर ही डूबते देखा है ၊
मैने देखा है , इक दीपक
अधियारों से टकरा जाता है ,
रवि तेज बने अनेकों को
पर , तम में ही डूबे देखा है ၊
मैने देखा है उन कर्णों को
जिनकी, ख़ुद ना रही बिसात कोई
पर क्षद्मी भामासाहों को भी
दुनिया को छलते देखा है ၊
देखा है ऐसे भगीरथी भी
जो जन में जीवन खपा गये
ऐसे भी देखे परजीवी
जो सेवा से जन को पचा गये ၊
यह जग है,जगमग करता है
आंखों की ज्योति सजग रखना
माया की नगरी में है जीना
जग की आखों को तोल के रखना ၊
उमेश श्रीवास्तव
नव जीवन विहार कालोनी
विन्ध्य नगर , सिंगरौली
दिनांक ९.०३.२०२१
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