स्वागत पलास फिर आये तुम
कृष्ण आवरण भेद,
मृदु, मंद मंद मुस्काए तुम,
स्वागत पलास फिर आये तुम ၊
स्वर्णिम कपोल,रक्तिम अधरों पर,
कृष्ण मेघ जो छाये हैं,
श्रृंगार किये पर, व्यथित ह्रदय हो ,
हो कहां वसन गंवाये तुम ?
स्वागत पलास फिर आये तुम ၊
टकटकी लगाये दृग लगते हैं,
जिनमें विरही आश पले,
विरह व्यथा की झांकी है क्या ?
क्यूं थोड़े अलसाये तुम ?
स्वागत पलास फिर आये तुम ၊
सुलग रहा है तन मन सारा,
टपक रही है प्रेम सुधा,
ह्रदय रक्त से, लीप के आंगन,
हो किसकी आश लगाये तुम ?
स्वागत पलास फिर आये तुम ၊
कौन प्रिया है ? इतनी निष्ठुर !
प्रणय तेरा ना जान सकी ,
रसिक वियोगी, तुम तो योगी,
हो किसकी अलख जगाये तुम ?
स्वागत पलास फिर आये तुम ၊
गिरि ,पठार अरु समतल वसुधा,
तुम सबमें इकसार जिये,
आज हुआ क्या ! क्यूं विचलित हो ?
क्यूं अपना धैर्य गवांये तुम ?
स्वागत पलास फिर आये तुम ၊
मदन बांण ले संधान करो बस,
हृदय बसी प्रिय के हिय को,
प्रेम सुधा से सींच उसे फिर,
वामा आज बना लो तुम ,
स्वागत पलास फिर आये तुम ၊
उमेश कुमार श्रीवास्तव
शिवपुरी
दिनांक ०२.०३.२०२१
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