तकता, जल बिन, सूनी धरती
चला जा रहा उड़ता तकता
शुभ्र परों व व्यथित दृगों से,
म्लान धरा को ၊
जल बिन सूनी हर काया है ,
पाषाण सदृष्य फिर हर माया है,
स्पन्दन है , पर रस विहीन सभी
जीव चाराचर सम्पूर्ण धरा पर ၊
उड़ा जा रहा टकटकी लगाये
मृदुता कहीं नजर न आये
सूखी निर्झरणी सूखे ताल
गिरि उपवन सब विह्वल
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