रसराज "रति"(श्रृंगार)
हम हास करें या क्रोध करें,
भयभीत रहें या उत्साह भरें,
विस्मित हो कर बस शोक करें,
जुगुप्सीत हो कर निवेद करें ,
पर, भूल सके क्या रति रस को,
रसराज यही, आनन्द भरे ၊
जग कारक रसराज रति
मोहक,उर्जित,उन्माद जनक
पालक , मारक ,उद्धारक , रति
है ,अजर अमर अविनाशक ၊
आगार नहीं, जग कण कण को
श्रृंगार बिना इस वसुधा पर
रसराज बिना रस हीन धरा
हर प्राण लगे मरु रज कण से ।
मन्मथ मथे मथनी सम
निर्जीव,सजीव सभी कण को
मकरंद बने, सुरभित चहुंदिश
अजर रहे रस भीगत जो ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
इन्दौर , दिनांक १८. ०५ . २०२०
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