कितना ध्यान रखते हैं
दूसरों की असुविधाओं से
हो बेपरवाह
पीड़ा क्या होती है
तभी पता चलता है
जब होती स्वयं को वह
दूसरों की पीड़ा बेमतलब की
हमें उससे लेना व देना क्या
बना लेते हैं अनेको बहाने
जब जरा अड़चन आती है
अपनी सुविधाओं में
दूसरों से छिनने को सुविधाएं
भले ही जी रहा हो वह पीड़ाओं में
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